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________________ कंस वध ४.६ के भय से न कर सकते थे । गोकुल वासियों का यह दुःख श्री कृष्ण से न देखा गया। उन्होने अश्व का पीछा किया, केशी अश्व कृष्ण को अपने पीछे देखकर भागने लगा । कृष्ण ने दौड़कर उसे पकड़ लिया और उसके अपाल (गर्दन के बाल) पकड़ कर उस पर सवार हो गए। अश्व ने पूरी शक्ति लगाई कि वह कृष्ण के चगुल से मुक्त हो जाय । उन्हें गिराने के लिए उद्दण्डता की। बुरी तरह भागा, ऊंची ऊची छलागें लगाई पर श्री कृष्ण उसकी कमर पर जमे रहे । आखिर केशी अश्व अपनी शक्ति भर भागने, उछलने, कूदने के उपरान्त शान्त हो गया । श्री कृष्ण ने तब उसे एड़ लगाई और खूब भगाया, अश्व यह अनुभव कर रहा था कि उसकी कमर पर बहुत ही भारी भार लदा हुआ है । वह हाप रहा था, वह अपनी जान बचाने की चेष्टा करने लगा, पर श्री कृष्ण ने उसकी उद्दण्डता का दण्ड देने के लिए उसे भगाया, इतना भगाया कि जब श्री कृष्ण उसे अशक्त, शिथिल और पूर्ण रूप से दण्डित समझते लगे, तब उसे छोडकर घर चले आये, तो लोगों ने उसे निष्प्राण पड़े हुए पाया। इधर जब श्री कृष्ण के केशी अश्व पर सवार होने का समाचार यशोदा और नन्द को ज्ञात हुआ तो वे चीत्कार करने लगे, करुण क्रन्दन सुनकर सारा ग्राम एकत्रित हो गया, सभी कृष्ण के दुस्साहस पर दुख प्रकट करने लगे। उन्हें सभी को श्री कृष्ण से अपार प्रेम था, कोई भी नहीं चाहता था कि श्री कृष्ण को कुछ भी कष्ट हो, अतएव वे यही सोच कर दुखित हो रहे थे कि यदि कृष्ण को कुछ हो गया तो वे क्या करेंगे। परन्तु जब श्री कृष्ण हसते हुए वापिस पहुँचे तो यशोदा ने दोडकर उन्हें छाती से लगा लिया, सारे ग्रामवासी यह देखने को दौड पड़े कि कृष्ण को कहीं चोट तो नहीं आई । परन्तु कृष्ण तो खिल खिला रहे थे। उन्होंने कहा- 'वह अश्व तो बड़ा मूर्ख और कमजोर निकला । जब मैं उस पर सवार हुआ तो भागने लगा और जब मैं भगाने लगा तो उसका स्वास उखड गया । और जब मुझे दौडाने में आनन्द आने लगा तो वह भूमि पर लेट गया। निराश मैं लौट आया।" ___लोग उस अश्व की दशा देखने के लिए दौड पड़े। जहां कृष्ण ने उसे छोडा था, वहीं जाकर देखा तो वह निष्प्राण पडा था। फिर क्या
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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