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________________ ३८८ जैन महाभारत हत्या करने के उद्देश्य को लेकर युद्ध के लिए आ गया । कपट करना,कोई दूसरा बहाना करके अपनी दुष्ट भावना को पूर्ण करना ही आसुरी प्रकृति के लक्षण हैं । दुर्योधन के मन की बात भीम बेचारे का क्या मालूम ? वह सीधे स्वभाव गदा-युद्ध के प्रदर्शन के निमित्त गदा लेकर मैदान में आ गया। दोनों में तुमुल युद्ध होने लगा। यद्यपि दुर्योधन भीम को मार डालने के उद्देश्य से ही गदा चला रहा था। किन्तु भीम अपने कौशल से उसके बार को बचा लेता था । भीम के मन में किसी प्रकार की दुर्भावना नहीं थी। अतएव वह दुर्योधन पर घातक प्रहार न करता था। भीम ओर दुर्योधन की गदाए पहाड़ की भान्ति लड़ जाती थीं, जिस से दर्शक भयभीत हो जाते, यह भयानक सग्राम देख कर बहुतों का कलेजा कांप रहा था। थोड़ी देर में दुर्योधन की दुर्भावना दर्शकों पर प्रगट हो गई ओर कुछ लोग जोर जोर से कहने लगे कि दुर्योधन नियम विरुद्ध गदा चला रहे हैं। परन्तु कुछ लोग दुर्योधन के पक्ष के भी थे, वे बोले-'नहीं | दुर्योधन की गदा ठीक चल रही है। इस प्रकार कुछ लोग दुर्योधन का विरोध और कुछ उसकी प्रशंसा करने लगे। दुर्योधन की दुर्भावना भीम पर भी प्रगट हो गई और सन्देह तव विश्वास में परिणत हो गया जब कि उस ने दुर्योधन के पक्ष के लोगों के मुख से उसकी प्रशंसा सुनी। भीम क्रद्ध हो गया और फिर दोनों में परीक्षा के बदले भयंकर युद्ध होने लगा, ऐसा प्रतीत होने लगा मानो दो मदोन्मत्त हाथी अपनी सूड से आपस में घमासान युद्ध कर रहे है । इस भयानक युद्ध को देख कर लोगों को भय हुआ कि आज या तो भूमि दुर्योधन हीन हो जायेगी अथवा भीम ही समाप्त हो जायेगा। इस आशका से लोग चिल्लाने लगे--अनर्थ हो रहा है २ यह परीक्षा नहीं घोर युद्ध हो रहा है। इसे रोको । युद्ध बन्द करो। द्रोणार्य भी जान चुके थे कि दुर्योधन की दुर्भावना से भीम उत्तेजित हो गया है और यह ठीक ही है कि यदि इन्हें न रोका गया तो अनर्थ हो जायेगा और परीक्षा परीक्षा में ही मैं अपयश का भागी यनू गा । उन्होंने यह सोच कर अपने पुत्र अश्वत्थामा से कहा"पुत्र । तुम इन दोनों को छुड़ा दो।" । अश्वत्थामा स्वयं एक शूरवीर था, वह दोनों के बीच में जा खड़ा हुआ और दोनों की गदाएं पकड़ ली। चूकि दोनों में से किसी को भी
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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