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________________ जन महाभारत आत्मा के गुणों को नष्ट कर देता है। ईर्ष्या को छोड़ो अपनी त्रुटियों को नष्ट करो, स्वच्छ हृदय से विद्या की साधना में लीन हो जाओ। यदि ऐसा तुमने कर लिया तो किसी दिन तुम भी अर्जुन सरीखे सुशिष्य और योग्य पात्र बन जाओगे। उस दिन तुम्हारे लिए जो प्रेम मेरे हृदय में होगा उसे अर्जुन भी प्राप्त न कर सकेगा।" अजन योग्य पात्र है और मैं अयोग्य । यह निर्णय आपने कैसे कर लिया ?" अश्वत्थामा रोष से बोला। "इसका उत्तर तुम्हें किसी और दिन दंगा" द्रोणाचार्य इतना कह कर चुप हो गए। कुछ दिन बीत जाने के बाद एक दिन द्रोणाचार्य ने अजन और अश्वत्थामा, दोनों को बुलाया । अर्जुन को संकरे मुह का और अश्वत्थामा को चौड़े मुह का घड़ा देकर कहा कि जाओ इनमें जल भर लाओ । जो भर लायेगा तुम में वही सच्चा शिष्य होगा। ___यह सुनकर अश्वत्थामा बहुत प्रसन्न हुा । उसने सोचा मेरे उलाहने का पिता जी पर प्रभाव पड़ गया है इसी कारण वे मुझे योग्य पात्र सिद्ध करने के लिए प्रयत्नशील हैं तभी तो मुझे चौड़े मुह का घड़ा दिया है ताकि शीघ्र भर जाये और अजन को संकरे मुह का घड़ा दिया है जिसे भरने में अधिक देर लगेगी। श्राज अर्जन से बाजी मार कर उसे नीचा दिखाने का सुन्दर अवसर है। किन्तु अर्जुन का हृदय स्वच्छ था, उसमें ईर्ष्या का नाम तक भी न था वह सोचने लगा कि पानी भरने की ही बात होती तो गुरुदेव इस काम को और से भी करा सकते थे। पर इस कार्य को हम दो को सौप कर और साथ में सुशिष्य की परीक्षा की बात कह कर गुरुदेव ने सकेत किया है कि इस मे कोई रहस्य है। वह क्या रहस्य है ? जब इस पर विचार किया तो उसे यह समझते देर न लगी कि गुरु देव वरुण बाण की परीक्षा लेना चाहते है। __ दोनों जल लेने के लिए दौड़े। अश्वस्थामा सोचता था कि आज अर्जुन को अवश्य ही हराऊ गए। मैं तो घड़ा भरकर तीन चक्कर 'लू गा तब कहीं अर्जुन का घड़ा भरेगा। उसे कल्पना तक नहीं कि यह वरुण वाण की परीक्षा है । वह सरोवर की ओर भागा पर अजन ने कुछ ही दूर जा कर एक वरुण वाण मारा और घड़ा भर
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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