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________________ ३१८ जैन महाभारत mmmmmmmmmmmmmmmmmmm अन्दर अभिमान सावन भादों की घटाओं के समान छा गया। उसे अपने गर्भवती होने का इतना अभिमान हुआ कि वह अन्य बन्धुओं को कुछ समझती ही नहीं थी। वह दूसरों को तुच्छ समझती और अपने आप मे फूली न समाती। __एक रात्रि को कुन्ती अपनी शय्या पर निन्द्रामग्न थी कि वह स्वप्न लोक में जा पहुंची । उसने स्वप्न में एक अद्भुत स्वप्न देखा । आंख खुली तो देखा कि प्राची लाल हो उठी है । जब सूर्य की किरणे पृथ्वी को आलोकित करने लगी उसने पति से अपने स्वप्नों का वृत्तात सुनाया और पूछा कि हे जगपति । इस अदभुत स्वप्न का क्या कोई विशेष अर्थ है ? पाण्डू नप ने स्वप्न सुनकर हर्षित हो कहा "प्रिये । तुमने बहुत ही सुन्दर स्वप्न देखा है । इसका अर्थ यह है कि तुम्हारे एक शशि समान सुन्दर पुत्र होगा, जो मेह समान महान, सागर समान गम्भीर और गहन विचारों वाला, रवि समान दैदीप्यमान, कॉतिवान, और अपार धन राशि का स्वामी लक्ष्मीपति, दानवीर और प्रभावशाली होगा। कुन्ती पाण्डू द्वारा वर्णित स्वप्न फल सुन कर बहुत ही आनन्दित हुई। उसने जिन धर्म के पालन में विशेष रुचि लेनी आरम्भ कर दी, देव गुरु को प्रतिदिन वन्दना करके शुभ कर्मों में मन लगाना प्रारम्भ कर दिया, दीन दुखियों के प्रति करुणा का प्रदर्शन करती, परोपकार में विशेष रुचि लेती । प्रतिदिन धर्म कथा सप्रेम सुनती । कुन्ती में तो वैसे ही कितने गुण थे पर गर्भवती होने के पश्चात उसमें कितने ही अन्य सदगुणों का प्रादुर्भाव हुआ और इनके कारण वह सारे परिवार दास दासियों की प्रिय हो गई। सभी उसकी ओर विशेष प्रेम और श्रद्धा से देखने लगे। ___मंगलवार को शुभ मुहूत और शुभ लग्न में उसने एक दिव्यकुमार को जन्म दिया । शिशु के मुख पर अलौकिक काति थी । जैसे उसके ललाट पर बालचन्द्र उत्तर आया हो । सूरत देखकर सारे परिवार को अपार हर्ष हुआ। ज्यों ही शिशु का जन्म हुआ अन्तरिक्ष से देव वाणी हुई कि यह शिशु अपने जीवन में महान बलवान, दानी, पराक्रमी, विनयवान, गम्भीर, धीर, पुरायात्मा, धर्मवीर, मतवान,
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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