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________________ २५६ जैन महाभारत नागिन बहुत प्रसन्न हुई किन्तु वह बचे ही बचे इतने में कुटिल प्रकृति वाले छोटे भाई ने उस नागिन पर से गाड़ी निकाल ही दी फिर क्या था देखते ही देखते वह नागिन वहीं छटपटाती हुई मर गई। इस जन्म मे वह नागिन हो तुम्हारी सेठानी बनी है वह बड़ा भाई जिसने नागिन को बचाने का प्रयत्न किया था ललित है, इसी लिए यह उसे इतना प्रिय है। छोटा भाई गगदत्त है। पिछले जन्म में इसने उसके प्राण लिए थे इसलिए सेठानी उससे इतना बैर रखती है इसलिए स्मरण रक्खा कि पूर्व जन्म के कर्मों के बिना बैर या प्रीति आदि कुछ भी नहीं हो सकता"। साधु के द्वारा पूर्व जन्म का वृतान्त जान कर ललित और सेठ को कर्मों की विचित्रता के कारण ससार से वैराग्य हो गया और उन्होने तत्काल दीक्षा ले ली। उस जन्म में वे शरीर त्याग कर महाशुक्र देवलोक मे गये वहीं पर स्वर्गीय सुखों का उपभोग करने लगे। इधर गंगदत्त ने भी माता के अनिष्ट का स्मरण कर विश्व वल्लभ होने का निदान वॉधा । वहां से शरीर छोड़ कर वह भी महाशुक्र देवलोक का अधिकारी हुआ। ललित का जीव ही रोहिणी के गर्भ से बलदेव के रूप में अवतरित हुआ और उधर गगदत्त का जीव देवकी के गर्भ से कृष्ण के रूप में आया। श्री कृष्ण जन्म उधर जिस समय वसुदेव और देवकी ने अपनी सब सन्तान कॅस को देने की प्रतिज्ञा कर ली उसी समय भदिलपुर मे नाग नामक एक सेठ रहता था उसकी सुलसा नामक पतिपरायणा पत्नी थी। एक बार नैमितिक ने बचपन मे सुलसा को बताया कि वह मृतवत्सा होगी यह सुन कर सुलसा वहुत चिन्तित और दुसी हुई और वह तभी से हरिणैगमेपी देव की आराधना करने लगी । इस ओराधना से देव के प्रसन्न हो जाने पर सुलसा ने उससे पुत्र को याचना की इस पर देव ने अवधि ज्ञान वल से विचार कर कहा कि अतिमुक्त मुनि का वचन मिथ्या नहीं हो सकता तुम्हारी कोख से जितनी भी सन्तान होगी वह सव मरी हुई ही होगी किन्तु तुम्हारी प्रसन्नता के लिये मैं एक उपाय कर सकता हू वह यह कि प्रसव के समय मैं तुम्हारे मृतक शिशु को देवकी के पास
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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