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________________ NNNNN महाभारत नायक बलभद्र और श्रीकृष्ण २५५ . सुन्दर है किन्तु भोजन करते समय कहीं गगदत्त का पता तुम्हारी माता को लग गया तो अनर्थ हो जायेगा। ___ ललित ने उत्तर दिया पिता जी आप किसी प्रकार की चिन्ता न करें मैं इस प्रकार की व्यवस्था करू गा कि गगदत्त हमारे साथ भोजन भी करले और माता जी को उसका पता भी न लगे। तदनुसार महामति सेठ ने एक साथ भोजन करने की अनुमति दे दी । भोजन का अवसर उपस्थित होने पर ललित ने गंगदत्त को एक वस्त्रावर्ण - पर्दे के पीछे बिठा दिया और पिता पुत्र दोनों पर्दे के बाहर बैठ कर कर भोजन करने लगे। भोजन करते समय वे अपनी थाली में से पकवान उठा उठा कर पर्दे के पीछे बैठे हुए गगदत्त को भी देते जाते थे । इतने ही में दैवयोग से हवा के कारण पर्दा उड गया अब क्या था पर्दे के उडते ही उसके पीछे बैठा हुआ ग गदत्त सेठानी को दिखायी दे गया। अपने उस पुत्र को जीवित देख जिसे उसने अपनी समझ से मरवा डाला था, सेठानी के तन बदन मे आग लग गई। उसने आव देखा न ताव गगदत्त को पकड कर इस प्रकार पीटना प्रारम्भ किया कि मारे लातों घूसों के उसे बेहोश कर डाला। इस प्रकार उसे मरा जान एक दम नौकरों को आज्ञा दे उसे नदी में फिकवा दिया। किन्तु सेठ ने उसे तत्काल नदी मे से निकलवा कर उसका यथोचित्त उपचार कर फिर एकान्त गुप्त रूप से उसकी सब व्यवस्था कर दी। कुछ दिनों पश्चात् उसी नगर में घूमते घूमते अवधिनानी संत आ गये। महामति को मालूम होने पर वह अपने पुत्र ललित को साथ लेकर उसके पास जा पहुंचा और यथाविधि वदन नमस्कार के अनन्तर बडी विनय के साथ उनसे पूछा कि महाराज | गतदत्त की माता इसके प्रति ऐसा वैर भाव क्यों रखती है ? सेठ के ऐसे जिज्ञासा भरे वचन सुन ज्ञानी ने उत्तर दिया कि "ललित और गगदत्त पिछले जन्म मे सगे भाई थे । ललित बड़ा और गगदत्त छोटा था एक बार वे दोनो गाडी लेकर जगल में लकडियाँ लेने गये । गाड़ी में लकड़ियों भर कर जब वे जगल से लौट रहे थे तव मार्ग में बड़े भाई को एक नागिन दिखाई दी उसे देखते ही उसने अपने छोटे भाई को जो गाड़ी चला रहा था कहा कि देखो मार्ग में नागिन पडी हुई है इस लिए गाडी को बचाकर निकालो कहीं यह पहिये के नीचे आकर कट न जाये । बड़े भाई की यह बात सुनकर
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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