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________________ 1 महाभारत नायक बलभद्र और श्रीकृष्ण २५१ आयोजन किया । इस महोत्सव की [ धूम कइ महीनो तक चलती रही । सब लोग नाना प्रकार के रंगरेलियों में मग्न दिखाई देते थे । नाना प्रकार के राग रग, कहीं नृत्य गान व भोज्यपान आदि की व्यवस्था कर खुशिया मनाई जाती रही । नगर निवासियों का भी इस अवसर पर उत्साह दर्शनीय था । मथुरा नगरी इस समय सचमुच_ देवराज इन्द्र की पुरी अमरावती के समान सब प्रकार के सुख विलास वैभव धन धान्य और श्रानन्द भोग से परिपूर्ण दिखाई देती थी । * एक अद्भुत घटना इसी बीच एक दिन मासोदवासी अतिमुक्त अणगार पारण के लिये कस के यहाँ आ गये । उस दीर्घ तपस्वी को देखते ही मद में उन्मत्त हुईं कस पत्नी जीवयशा तत्काल उन्हें पहचान गयी । और बोली देवर बहुत अच्छा हुआ जो इस अवसर तुम आ गए, यह तुम्हारी afer देवकी का विवाहोत्सव ही मनाया जा रहा है अतः आओ हम और तुम इस आयोजन का आनन्द लूटे' यह कहती हुई उनके गले में लिपट गई । मुनिराज को उसकी इस प्रवृत्ति पर महा आश्चर्य हुआ। वे उसके भविष्य को जानते थे अत तत्क्षण उसकी आलिंगन पारा से अपने को मुक्त करते हुए उन्होंने कहा - हे जीवयशा तू क्यों अभिमान में भूम रही है ' यन्निमित्तोऽयमुत्सव तद्गर्भ सप्तमो इतापति पित्रोस्त्यदीययो ” अर्थात् जिस देवकी के विवाहोपलक्ष्य में यह उत्सव मना रही है उसका सातवां गर्भ ही तेरे पति और पिता का निघातक होगा ।' मुनिराज का यह दुःखमय बचन सुन कर जीवयशा का सारा नशा उतर गया और दुखद भविष्य की आशका से वह थर थर कॉप लगी । अन्त में मुनिराज के चले जाने पर उसने तपस्वी के आने आदि का सारा विवरण कह सुनाया । 1 यह सारा वृत्तान्त सुन कर कस अत्यन्त चिन्तित हुआ । उसकी श्राखों के आगे अन्धेरा छा गया उसे कुछ भी नहीं सूझ रहा था कि क्या किया जाय, और क्या न किया जाय, क्योंकि उसे विश्वास था कि मुनिराज का वचन कभी असत्य नहीं हो सकता । उन्होंने जो कहा है वह एक न एक दिन होकर ही रहेगा । किन्तु कस बडा साहसी और क्रूर प्रकृति का व्यक्ति था ऐसी छोटी मोटी बातों से निराश होना कुछ
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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