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________________ २३३ AVAN रोहिणी स्वयवर द्वषही। मैं किसी का भी वरण न कर अविवाहित ही रहूँ, ऐमी भी मेरी इच्छा नहीं फिर भी न जाने क्यो मेरी इनके प्रति उपेक्षा की भावना है । अब यदि इनके अतिरिक्त अन्य कोई वर पुण्य विधाता ने मेरे भाग्य मे लिखा हो और वह यहां उपस्थित हो तो आप मुझे उसके पास ले चलिए, अन्त में होगा तो वही जो कर्म को स्वीकार है। इधर धाय और राजकुमारी रोहिणी की इस प्रकार बातचीत हो रही थीं कि इतने में उधर से अत्यन्त मनमोहक हृदयधारी वेणु की मधुर ध्वनि सुनाई दी । उस ध्वनि के कानों में पडते ही राजकुमारी और धाय दोनों के कान खडे हो गये। धाय ने तत्काल गजकुमारी से कहा-बेटी, इधर आओ। यह देखो यह वेणु की मधुर ध्वनि कह रही है कि 'तुम्हारे मन को मोहित करने वाला राजहस यहा बैठा है।' यह सुनते ही रोहिणी ने तत्काल उधर बढकर देखा कि साक्षात विद्याघर या देवता के समान हृदय-हारी रूप वाला एक नवयुवक बैठा मधुर ध्वनि से वेणु बजा रहा है। बस फिर क्या था देखते ही दोनों की ऑखें चार हुई, और ऑखों ने आपस में दोनों के हृदयों का विनिमय कर डाला । अपने नेत्रों मे लज्जा तथा कर कमलों में जयमाला लिए रोहिणी आगे बढी और सब के सामने वह वरमाला उनके गले में गल उनके साथ सिंहासन पर जा बैठी। वसुदेव के गले में जयमाल पडते देख उस स्वयवर में उपस्थित न्याय के अनुयायी सुजन कहने लगे कि अहा । यह स्वयवर बहुत ही सुन्दर ढग से सम्पन्न हो गया है वर और वधू का मणी काञ्चन संयोग व रोहणि को साक्षात् चन्द्र समान पति ऐसा जोड़ा ससार में दू ढने पर भी अन्यत्र नहीं मिलता। यद्यपि इस वर का कुल ज्ञात नहीं है तथापि इसके तेजोमय मुखमडल से स्पष्ट लक्षित होता है कि यह महाभाग अवश्य किसी विशिष्ट राजवश का विभूषण है। यहा पर उपस्थित इतने बडे-बडे राजा महाराजाओं के रहते हुए भी राजकुमारी ने इस अज्ञात कुलशील व्यक्ति का वरण कर अपनी अनुपम चातुरी का ही परिचय दिया है। इसके विपरीत उस स्वयवर सभा में दूसरों के उत्कर्ष को देख जलभुन जाने वाले जो दुर्जन राजा लोग बैठे थे। वे कोलाहल मचाने लगे। कोई कहता कि राजकुमारी ने इस बाजे बजाने वाली को वर कर अत्यन्त अनुचित कार्य किया है। इसके ऐसा करने से यहा पर
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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