SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 255
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२६ वसुदेव क अद्भुत चातुय तब वह उस चित्र को ललितश्री के पास ले गई । चित्र पर दृष्टिपात करते ही ललितश्री के नेत्र सजल हो आये । उसके मुख मडल पर उदासी की रेखाएँ छागई, उसे इस प्रकार सजल नेत्र और चिन्तित देख सखियों ने पूछा कि-'हे स्वामिनी ! आप इतनी उदास क्यों हो गई है ।' तब ललितश्री ने उन्हें उत्तर दिया हे । सखि स्त्रियाँ सचमुच बड़े छिछोरे हृदय वाली, कार्याकार्य में अविवेकिनी और अदीर्घदर्शी होती है। उनके हृदय में अपने प्रियजनों के सम्बन्ध व्यर्थ ही में कई दुर्भावनाएँ आ जाया करती हैं। अपनी इसी मूर्खता पर पश्चात्ताप करते हुये मुझे फूट फूट कर रोना आ रहा है। ___ यह कहकर उसने सखियों के द्वारा नसुदेव को अपने घर बुला लिया और उसकी माता ने वसुदेव के साथ उसका विवाह कर दिया ।
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy