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________________ २२२ जैन महाभारत दिन ढलते-ढलते महाराज पद्मरथ की दायीं भुजा के समान सहायक उनका मन्त्री अपने परिजन तथा सेवकों के साथ वसुदेव के पास पहुँच अर्ध्य प्रदान के द्वारा उनका सम्मान कर उन्हे अपने घर ले गया । दूसरे दिन प्रात काल मन्त्री ने कहा कि महाभाग, मुझे हरिवंश की उत्पत्ति और उसके प्रमुख राजाओं के दिव्य चरित्रो की कथा सुना कर कृतार्थ कीजिये । इस पर वसुदेव ने हरिवश चरित्र बडे विस्तार से कह सुनाया। उस चरित्र को सुन कर मन्त्री महोदय बहुत प्रसन्न हुए। कुछ दिनो पश्चात् महाराज ने उन्हें बुला कर अपनी कन्या पद्मावती के साथ उनका विवाह कर दिया। अब वसुदेव शची के साथ इन्द्र के समान पद्मावती के साथ आनन्दपूर्वक विहार करने लगे। एक दिन बैठे-बैठे वसुदेव ने पद्मावती से पूछा कि- "हे देवी । मुझ अज्ञात कुलशील व्यक्ति के साथ तुम्हारे पिता ने तुम्हारा विवाह क्योंकर कर दिया। इस पर उसने हसते हुए उत्तर दिया कि हे आये पुत्र | अत्यन्त मनमोहक सुगन्धि की सम्पत्ति से समद्ध किन्तु वन के एकान्त प्रदेश मे कुसुमित चन्दनवृक्ष के सम्बन्ध मे क्या भ्रमर को कुछ बताने की आवश्यकता रहती है ? मेरे पिता ने एक दिन किसी विश्वस्त ज्ञानी नैमित्तिक से पूछा कि भगवन् पद्मावती को कब और कैसा योग्य वर मिलेगा। इस सम्बन्ध में कुछ बताने की कृपा कर इस दास को चिन्ता मुक्त कीजिए ।' तब उत्तर में नमितिक ने कहा महाराज आप इसके सम्बन्ध में किसी प्रकार की चिन्ता न कीजिए क्योंकि इसे ऐसा श्रेष्ठ पृथ्वीपालक पति प्राप्त होगा। जिसके चरणो मे बड़े बडे राजा महाराजाओ के मस्तक झुका करगे।' पिता जी ने फिर पूछा महाराज वह पुरुष कब और किस प्रकार प्राप्त होगा? नैमित्तिक ने उत्तर दिया वह थोड़े ही समय मे स्वयं यहां आ पहुँचेगा, जो व्यक्ति पद्मावती के लिए श्रीदाम पुष्पों की एक माला बना कर भेजे और हरिवश का सच्चा इतिहास सुनाय । वही तुम्हारी कन्या का पति होगा।' इस प्रकार उनके वचनो को प्रमाणित मानकर पिता जी ने मुझे कहा कि बंटी जो व्यक्ति तरे लिए श्रीदाम बना कर भेजे तू उसकी सूचना तत्काल मन्त्री जी को दे देना।
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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