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________________ २०८ जैन महाभारत - प्रकार अरिहन्त का उपदेश सुन कर दमयन्ती आदि पुन. अपने स्थान पर लौट आये। ____दमयन्ती एक बार एक गुफा में अकेली बैठी तपस्या कर रही थी। कि उसे बाहर से___'मैंने तेरे पति को देखा है। इस प्रकार के शब्द सुनाई दिये । यह शब्द सुनते ही वह गुफा से बाहर निकल आई, और उस व्यक्ति को द ढ़ने लगो, जिसके वे शब्द थे । जगल में बहुत दूर तक भटकती रही। पर कहीं भी उसे कोई व्यक्ति दिखाई नहीं दिया । भटकते भटकते वह अपनी गुफा का मार्ग भी भूल गई, अतः वह चारो ओर से निराश्रित हो पागलों को भॉति निरुहेश्य भाव से आगे बढ़ने लगी। मार्ग में उसे एक सार्थ मिल गया, उसके साथ चल कर वह अचलपुर नामक स्थान में श्रा पहुंची। यहाँ पर वह पानी पीने के लिए एक बावड़ी में उतरी । ज्यूही उसने पानी में पैर रक्खा कि एक गोह ने उसका पैर पकड़ लिया, गोह के पॉव पकड़ते ही दमयन्ती ने नमोकार मन्त्र का स्मरण किया। बस इस मन्त्र के स्मरण करते ही तत्काल गोह ने उसका पांव छोड़ दिया। इस प्रकार सकुशल जल पान कर दमयन्ती बावड़ी से बाहर निकल आई ओर एक वृक्ष के नीचे अद्ध निन्द्रित अवस्था में बैठ गई। इसी समय यहाँ के महाराज ऋतुपर्ण की रानी चन्द्रयशा की कुछ दासियाँ बावड़ी पर पानी भरने आई, वे दमयन्ती के दिव्य तेजोयुक्त रूप को देख बड़ी प्रभावित हुई । उन्होने तत्काल जाकर अपनी रानी से उसकी बात कह सुनाई। इस पर रानी ने उसे अपने पास बुला लिया, यह चन्द्रयशा दमयन्ती की सगी मौसी थी। उसने बचपन मे दमयन्ती को देखा भी था, पर अब तक उसकी आकृति उसको ज्ञान न रही। इसीलिए वह उसे पहचान न सकी, फिर भी बड़े प्रेम से अपनी पुत्री के समान उसे लाड प्यार के साथ अपने पास रख लिया । इस प्रकार दमयन्ती को वहाँ रहते कुछ ही दिन बीते थे कि उधर महाराज भीमरथ को नल के राज त्याग का पता लगा, इस पर चिन्तित हो महाराज भीमरथ और रानी पुष्पदन्ती ने देश देशान्तरों मे दमयन्ती और नल को ढूढ़ने के लिए दूत भेज दिये । उसे ढूढता हुआ हरिमित्र नामक पुरोहित अचलपुर आ पहुँचा । उसने भोजन करते समय भोजन परोसती हुई दमयन्ती को पहचान लिया। दमयन्ती के मस्तक पर एक
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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