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________________ कनकवती परिणय २०३ मुनिराज ने उत्तर दिया हे गोपालक | साधु लोग किसी भी जीव पर सवारी नहीं करते । वे ऐसा कोई कार्य नहीं करते, जिससे दूसरों को कोई कष्ट या पीड़ा हो । मुनिराज तो सदा पैदल ही चला करते हैं । इस प्रकार बातचीत करते हुए वह साधु इसके साथ बस्ती में आ पहुंचे। गो पालक ने अपने घर आकर उनको दूध दान दिया, सारी रात्रि वहीं पर बिता कर मुनिराज ने प्रात काल हाते ही विहार कर दिया। गा पालक ने इस प्रकार प्राप्त हुए साधु सेवा के इस दुर्लभ अवसर को अपना बडा भारी भाग्य का उदय समझ कर अपने आपको धन्य माना। मुनिराज के सपर्क के कारण पति पत्नि दानों ने आवक धर्म ग्रहण कर लिया। और सम्यकत्व धारण कर दोनों सुख पूर्वक काल यापन करने लगे। तत्पश्चात् धन्य और धूमरी दोनों न दीक्षा ले ला। सात वर्ष तक दोनों मुनि व्रत का पालन कर समाधि मरण प्राप्त कर परलोक सिधार गये । क्षीर दान के द्वारा उपार्जित विशेष पुण्य के कारण और प्रशस्त लेश्या युक्त वे दोनों दम्पत्ति हेमवत् पर्वत पर जाकर युगलिये बने । पश्चात् आर्तध्यान और रौद्रध्यान के अभाव के कारण वहा से मर कर वे दोनों युगलिया क्षीर डिंडोर के नाम से विख्यात देव और देवी के रूप में दम्पत्ति हुए । (इति चौया और पाचवा भव) . कनकवती का छठा भव: (नल दमयन्ती चारत्र ) दव लोक से च्युत होकर वह देव काशल देश की अयोध्या नामक नगरी मे इक्ष्वाकु वशात्पन्न महाराज निषध की महारानी सुन्दरा की काख से पुत्र रूप में उत्पन्न हआ यहां उसका नाम नल रक्खा गया। इसी समय विदर्भ देश के कुन्डिन पुर नामक नगर में महाराज भामरथ राज्य करते थे। उनकी महारानी का नाम पुष्पदन्ती या देवलोक से च्युत होने पर क्षोर डिंडीरा देवी ने महारानी पुष्पदन्ती की कारख से पुत्री के रूप में जन्म लिया। यहा इसका नाम दवदन्ती या दमयन्ती पडा । यौवन मे पदार्पण करते ही दमयन्ती के स्वयवर की १ नोट नल दमयन्ती चरित्र विस्तार भय के कारण यहा सक्षेप में ही दिया जा रहा है। -लेखक
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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