SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 228
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन महाभारत प्रसन्नता के फूली न समाई । उसने तत्काल ही वसुदेव के गले मे वर माला डालकर उन्हे पति रूप मे वर लिया। इधर कनकवती के जयमाला पहनाते ही देव दुन्दुभिया बज उठीं। अप्सराओं के मगल गान प्रारम्भ हो गये । चारो ओर से धन्य-धन्य की आती हुई ध्वनि से नभ मण्डल गूज उठा और उस दम्पति युगल के सयोग की सभी सराहना करने लगे। विवाहोपरान्त वसुदेव ने कुबेर से बड़ी नम्रता के साथ पूछा कि हे देव । आपने यहा आने का कष्ट क्यों उठाया है कृपया आप मेरे इस कौतुहल को शान्त करने के लिये अपने आगमन का वास्तविक कारण बताने की कृपा कीजिये। __ यह सुन कर कुबेर ने अपने आगमन का कारण इस प्रकार बताना आरम्भ किया कनकवती का प्रथम भव इसी भारत वर्ष मे अष्टापद पर्वत के पास सगर नामक एक नगर है । वहा हर मम्मन नामक राजा राज्य करता था। उसकी रानी का नाम वीरमती था । एक दिन वह अपनी रानी के साथ शिकार खेलने निकला। दैवयोग से उसी समय एक मलिन वेशधारी साधु उसके सामने आ पहुँचे । राजा ने उस साधु को देखकर इसे बड़ा भारी अपशकुन समझा और सोचने लगा कि महलों से निकलते ही साधु का सामने मिलना तो अच्छा नहीं हुआ । इससे तो शिकार करते समय मुझ पर या मेरी प्रियतमा पर निश्चित ही कोई न कोई आपत्ति आयेगी । यह सोच कर वह दुष्ट तत्काल अपने महलों को लौट आया और दर्शन देने की प्रार्थना कर उस साधु को भी अपने महलों को भी अपने साथ ले आया । वहाँ पर उसने बारह घण्टे तक उन मुनिराज पर नाना प्रकार के उपसर्ग किये । तत्पश्चात् उसे कुछ दया आ गयी और उसने मुनिराज से पूछा महाराज-आप कहां से आ रहे थे और कहा जा रहे थे ? तब मुनि ने उत्तर दिया कि मैं रोहितकपुर से आया हू और अष्टापद पर्वत की ओर जा रहा हूं। तुमने मुझे मार्ग ही में रोक कर अपने साथी मुनिराजों से वियुक्त कर दिया है। राजा और रानी लघु कर्मी थे इसलिए मुनिराज से बात चीत करते हुए, वे दुःस्वप्न की भांति अपने क्रोध को भूल गये। मुनिराज तो
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy