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________________ । कनकवती परिणय १६५ कनकवती प्रमद वन में दिव्य वस्त्र भूषणों से अलंकृत हो अकेली बैठी है । यह सुनते ही वसुदेव प्रमद वन की ओर चल पड़े और कनकवती को खोजने लगे। खोजते-खोजते वे एक 'प्रासाद' के सातवें खड पर पहुँचे। वहाँ पर एक अत्यन्त भव्य भद्रासन पर बैठे हुई बहुमूल्य वस्त्राभूषणों से सुसज्जित एब पुष्पाभरणों से अलकृत साक्षात वन शोभा के समान समस्त वातावरण को आलोकित करती हुई कनकवती उन्हे दिखाई दी। इस समय वह वसुदेव का चित्र हाथों मे लिए हुए उस चित्र से न जाने वह क्या कुछ बातें कर रही थी। ____ कनकवती की यह दशा देख वसुदेव को कुछ समझ नहीं आया कि वह किस से क्या बाते कर रही है। इस प्रकार वसुदेव विस्मित से खड़े हो थे कि इतने में कनकवती की दृष्टि उन पर पडी। उन्हें देखते ही उसका मुख कमल हर्ष से विकसित हो उठा। वह तत्काल अपने आसन से उठ कर खडी हो गई और हाथ जोड़ कर वसुदेव से कहने लगी कि हे सभग, आज मेरे ही पुण्यों से आपका यहाँ आगमन हुआ है । हे प्राणप्रिय, आप मुझे अपनी ही दासी समझिये। यह कह कर वह वसुदेव को प्रणाम करने लगी, बीच में ही रोकते हुए कुमार ने कहा-हे राजकुमारी मुझे प्रणाम करने की आवश्यकता नहीं, क्योंकि मैं तो किसी का दूत हूँ। जो व्यक्ति तुम्हारे लिए वन्दनीय हो उसी को प्रणाम करना चाहिये । तुम तो भ्रम वश मुझे प्रणाम कर के की भूल कर रही हो। कनकवती ने उत्तर दिया हे कुमार | मैं भ्रम मे नहीं हूँ और न किसी प्रकार की भूल ही कर रही हूँ। मैं आपको भली भाति जानती हूँ वह विद्याधर मझे आपके बारे में सब कुछ बता गया है और आपका एक चित्र भी दे गया है अब मुझे आप धोखा नहीं दे सकते, अब तक मैं आपके चित्र को देखकर ही जीवित रही हूँ। आप ही मेरे जीवन सर्वस्व व प्राणाधार हैं । अपनी दासी के समक्ष इस प्रकार वचन कहना आपको शोभा नहीं देता। __वसुदेव ने समझाया- "हे सुन्दरी तुम सचमुच भूल कर रही हो विद्याधर ने जिनके बारे में बताया था वह मैं नहीं दूसरा कोई है। तुम यह जान कर प्रसन्न होगी कि मैं उन्हीं की ओर से तुम्हारे पास आया हूँ क्योकि मैं उनका सेवक हूँ अतः मुमे उन्होंने तुम्हें सदेश देने लिये भेजा है। तुमने कुबेर का नाम तो सुना ही होगा उनका अतुल
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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