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________________ मात्तन्ग सुन्दरी नीलयशा १४५ " हे नाथ शकटमुख नामक नगर के महाराजा नीलघर और रानी नीलवती थीं । उनके नीलाञ्जना नामक एक पुत्री और एक नील नामक एक पुत्र था । बचपन मे खेलते हुए उन दोनों ने आपस में यह प्रतिज्ञा कर ली कि यदि हम दोनों में से किसी के लड़का और दूसरे के लडकी होगी तो हम दोनों उनका विवाह आपस में कर देंगे । जब नीलाञ्जना बडी हुई तो उनका विवाह मेरे पिता जी से कर दिया गया । अब उस प्रतिज्ञा के अनुसार मेरा विवाह नील के पुत्र के साथ होना चाहिए था । किन्तु मेरे पिता जी को वृहस्पति नामक नैमित्तिक ने बताया था कि नीलयशा का विवाह यदुवशोत्पन्न परम सुन्दर वसुदेव कुमार (अर्द्ध भरत के स्वामी के पिता) के साथ होगा । यही कारण है कि मेरे पिता जी ने विद्या के बल से आप को यहाँ बुलाकर मेरा आपके साथ विवाह कर दिया है । मेरे विवाद का समाचार सुनते ही उनका पुत्र नीलकंठ और महाराज नील आगबबूला हो उठे। उन दोनों ने यहाँ आकर बड़ा भारी उत्पात मचाया है । किन्तु आप चिन्ता न करें पिता जी ने यह सब उपद्रव शान्त कर दिया है । यह सब वृत्तान्त सुनकर वसुदेव अत्यन्त प्रसन्न हुए । वे अपनी नव-विवाहिता पत्नी के साथ आमोद-प्रमोद में अपना समय व्यतीत करने लगे । नीलयशा का मयूर द्वारा हरा जाना १ एक दिन अनेक विद्याधर विद्या की साधना करने के लिए और औषधियाँ प्राप्त करने के लिए हीमान पर्वत की ओर जा रहे थे । उन्हें देखकर वसुदेव ने नीलयशा से कहा कि मैं भी विद्याधरों की सी कुछ विद्याए सीखना चाहता हूँ । क्या तुम मुझे अपना शिष्य समझ कर कुछ विद्याऍ सिखा सकती हो ? नीलयशा ने कहा "क्यों नहीं चलो हम लोग इसी समय हीमान् पवत पर चले, वहा मैं आपको इस सम्बन्ध बहुत सी बातें बतलाऊँगी ।" में इसके बाद नीलया वसुदेव को हीमान् पर्वत पर ले गई। वहां का अत्यन्त रमणीय दृश्य देखकर वसुदेव का चित्त चचल हो उठा। वसुदेव की यह अवस्था देख नीलयशा ने एक कदली वृक्ष उत्पन्न किया
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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