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________________ १३८ जन महाभारत ANA घर आने की तैयारी करने लगा कि इतने में वह देव एक विमान में बैठकर वहाँ आ पहुंचा । उन्होने मुझे बहुत से रत्नादि पदार्थ भेंट में दिये, और हम दोनों को विमान मे बिठाकर चम्पापुरी में छोड़ गये हम लोग तत्काल अपने मामा सर्वार्थ के घर पहुचे । वहा मेरी माता और पत्नी ने मुझे देखकर अपार प्रसन्नता प्रकट की। उधर देव ने मेरे लिये यह सव्य भवन हाथी, घोड़े रथ वाहन आदि तथा दास दासियों का प्रबन्ध कर दिया, और महाराजा से जाकर मेरे आगमन का वृतान्त कह सुनाया। तब महाराजा ने अपने सव परिजनो के साथ आकर मेरा बहुत अधिक स्वागत सम्मान किया । तब से लेकर मै अपनी माता तथा पत्नी मित्रावती के साथ मै आनन्द पूर्वक यहीं रह रहा हूं। उसके पश्चात् गन्धर्व सेना के साथ आपका जिस प्रकार विवाह हुआ वह सब वृतान्त आप जानते ही हैं । इस प्रकार हे वसुदेव यह गन्धर्व सेना मरी नहीं, प्रत्युत विद्याधर की पुत्री है । चारुदत्त के मुख से गन्धर्व सेना का यह वृत्तान्त सुन कर वसुदेव बहुत प्रसन्न हुए। गन्धर्व सेना के प्रति उनका प्रेम-भाव अब और भी अधिक बढ़ गया। मात्तंग सुन्दरी नीलयशा वसुदेव इस प्रकार चारुदत्त के घर पर सानन्द जीवन यापन कर रहे थे। इसी समय वसन्त ऋतु का सुहावना समय आ पहुचा । शिशिर ऋतु का रूखा सूखा समय समाप्त हो गया । पत्र विहीन वृक्षलताए सुन्दर मनोहर पत्र-पुष्पों के बानक धारण कर मनुष्यो के मनको मोहित करने लगीं। आम्र-मजरियों की मोहक महक (सुगन्ध) पर मुग्ध हो मधुप मधुर ध्वनि करने लगे। काननो मे कोकिल की कुहूकुहू की ध्वनि गू ज उठी । ऐसे सुहावने समय मे चम्पा नगरी के वनउपवन और उद्यान आमोद-प्रमोद के आगार बन गये । जहाँ देखिये वहीं नृत्य वाद्य और सगीत की बड़ी-बड़ी सभाये जुडने लगीं। कलाकारों की मडलियाँ उपस्थित जन समूह के समक्ष अपनी कला का प्रदशन कर सहृदयों के हृदयो को हरने लगीं। ऐसे ही वसन्त के सुहावने म मे एक दिन सुन्दर वस्त्रालकारो से सुसज्जित होकर वसुदेवकुमार वसेन व अन्य परिजनों के साथ रथ पर सवार हो भ्रमण के लिये
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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