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________________ गन्धवदत्ता परिग्य -- उपन्यास एवं पोर सप्तम सबके न्यान मानने चाहियें | सप्तम स्वर से युक्त गाधार यवस्वर्य होता है । यहाँ सप्तम स्वर से युक्त पाठ्य का अवश्य प्रयोग करना चाहिये इन समस्तों स्वरों का प्रयोग इच्छानुसार होता है। ये सात जातियां पड्ग ग्राम के आश्रय रहती है । गाधारी जाति में धैवत और ऋषभ को छोडकर शेष पॉच शरते हैं। पड़ग और उपन्यास होते हैं। पाढ्व र ऋषभ से उत्पन्न यहाँ गाधार न्यास होता है । ओर धैवत एव ऋषभ के बिना श्रवित होता है । यहाँ धैवत और ऋषभ का नियम से उलघन होता है । इस प्रकार गाधार मे स्वर न्यास और अश का सचार वर्णन कर दिया । रक्त गाधारी भी इसी के समान है और पड्ग का सचार होता है और मध्य सहित मध्यम उपन्यास होता है। गांवारोडीच्यवा मे पग मध्यम और सप्तम यश समझने चाहिये और वहाँ ऋषभ को छोड़कर शेष सात स्वर होते हैं । इस गांधारोदीच्यवा में प्रतरमार्ग न्यास उपन्यास समस्त विधि समम्नी चाहिये । मध्यमा में प्रशों के विना गाधार और सप्तम स्वर होते हैं वहां एक ही मध्यम न्यास और उपन्यास रहता है । सप्तम से युक्त गांवार पच स्वर वाला होता है प्रोर गांवार प्रश रहित पट् श्वर गाधार का सदा प्रयोग करना चाहिये । बहु और मध्यम प्रश की यहां बहुलता रखनी चाहिये जहा गाधार का लघन भी हो जाता है। मध्यादीच्या मे नाम का यश रहता है और मध्या में जो रीति होती है वह वहा भी समझ लेनी चाहिये । पचमी जाति में ऋषभ पंचम उपन्यास होते हैं और पचम न्यास रहता है। जो विवि मध्यमा में पतला आये हैं यह और पाव प्रौडव स्वर यहां समझने चाहिये और यहा पर पड़ग गाधार और पच की बहुलता होती हैं। यहां पर पचम और ऋषभ का संचार होता है और पंचम स्वरों के साथ गाधार का गमन भी होता है। गांधार पचमी में पाँच प्रकार के दोष माने गये हैं घोर पंचम एप को उपन्यास माना है । गांधार के साथ न्यास रहता है या पूर्व सर होता है। गांधारी में पंचम संचार माना गया है । षभ पंचम गांधार और निपाद ये चार प्रश है और ये है, गाधार न्यास और षड्ग से युक्त पाव होता है । तथा गांधार र उपभों में परस्पर सचार होता रहता है। यहा पर गति के स्पष्ठ और सप्तम वा न्यास होता रहता है और जय चित ही ६५
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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