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________________ येल विश्वविद्यालय ने भय से सम्बन्धित कुछ निष्कर्ष प्रस्तुत किए थे। उन्हे पढकर हम समझ सकते है कि भय हमारे शरीर और मन को कितना प्रभावित करता है। भय से ये शारीरिक परिवर्तन देखे जाते है-दिल का धडकना, नाडी का तेज चलना, मुह या गला सूखना, कापना, हथेलियो मे पसीना आना और पेट का अन्दर धंसना। मन पर भी गहरी प्रतिक्रियाए होती है। जैसे-विस्मृति, मूर्छा और पीडा की तीव्र अनुभूति होना। __ स्थानाग सूत्र मे असामयिक मृत्यु के सात कारण बतलाए गए है। उनमे भयात्मक अध्यवसाय उसका एक कारण है। रोग के भय से पीडा वढ जाती है। निर्भय रोगी की अपेक्षा भयाक्रान्त रोगी को पीडा की अनुभूति कई गुना अधिक होती है। मानसोपचारको ने रोग-पीडित व्यक्तियो पर शिथिलीकरण के प्रयोग किए। उनसे उनकी पीडा मे बहुत अन्तर आया। भय से स्नायविक तनाव बढता है। उससे पीडा तीव्र हो जाती है और कायोत्सर्ग से वह कम होता है, तब पीडा भी कम हो जाती है। क्रोध, अभिमान, माया, लोभ, राग, द्वेष, घृणा, शोक आदि मानसिक आवेगो से भी स्नायविक तनाव बढता है। कायोत्सर्ग से उन आवेगो का शमन होता है और फलत स्नायविक तनाव अपने आप दूर हो जाता है। कायोत्सर्ग की विधि कायोत्सर्ग बैठी, खडी और सोयी-तीनो मुद्राओ मे किया जा सकता है। इसकी पहली प्रक्रिया शिथिलीकरण है। यदि आप बैठे-बैठे कायोत्सर्ग करना चाहते है तो सुखासन या पद्मासन लगाकर या पालथी बाधकर बैठ जाइए। दोनो हाथो को या तो घुटनो पर टिकाइए या बायी हथेली पर दायी हथेली रखकर उन्हे अक मे रखिए। फिर पृष्ठवश (रीढ की हड्डी) और गर्दन को सीधा कीजिए। यह ध्यान रहे कि उनमे न झुकाव हो और न तनाव हो। वे शिथिल भी रहे और सीधे-सरल भी। फिर दीर्घश्वास लीजिए। श्वास को उतना लम्बाइए जितना बिना किसी कष्ट के लम्बा सके। इससे शरीर और मन दोनो के शिथिलीकरण मे बडा सहारा मिलेगा। ५६ / मनोनुशासनम्
SR No.010300
Book TitleManonushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1998
Total Pages237
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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