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________________ मानसिक आवेग-ये उसके मुख्य कारण है। हम जव-जब द्रव्य-क्रिया करते हैं अर्थात् शरीर को किसी दूसरे काम मे लगाते है और मन कही दूसरी ओर भटकता है, तव स्नायविक तनाव बढ़ता है। हम भावक्रिया करना सीख जाए-शरीर और मन को एक ही काम मे सलग्न करने का अभ्यास कर ले तो स्नायविक तनाव बढ़ने का अवसर ही न मिले। जो लोग इस स्नायविक तनाव के शिकार होते है, वे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य से वंचित रहते है। वे लोग अधिक भाग्यशाली है, जो इस तनाव से मुक्त रहते है। ___ तनाव उत्पन्न करने मे भय का भी बड़ा हाथ है। अध्यात्मवादियो ने उसके सात प्रकार वतलाए है१. इहलोक भय-मनुष्य को अपनी ही जाति-मनुष्य से होने वाला भय। २. परलोक भय-मनुप्य को विजातीय-पशु आदि से होने वाला भय। ३. आदान भय-धन-विनाश का भय। ४. अकस्मात् भय-काल्पनिक भय। ५. आजीविका भय-आजीविका कैसे चलेगी-इस प्रकार का भय। ६ मरण भय-मृत्यु का भय। ७ अश्लाघा भय-अपयश का भय। ये भय मनुष्य के जीवन मे व्याप्त रहते है। इनके द्वारा वह स्नायविक तनाव से बुरी तरह आक्रान्त होकर अशान्तिमय जीवन जीता है। जिसने अभय की आराधना की है, उसे कोई कष्ट नही होता। भयभीत व्यक्ति पल-पल मे कष्ट पाता है। जिसने अभय की आराधना की है, वह जीवन मे एक वार मरता है। भयभीत मनुष्य एक दिन मे कई वार मरता है। भय और हिसा मे गहरा लगाव है। जहां भय है, वहा निश्चित रूप से हिसा है। मन को अभय किए विना अहिसा हो ही नही सकती। अनियत्रित भय से अनेक रोग उत्पन्न होते है। मनोविज्ञान का सिद्धान्त है कि वियोग का भय जागृत होने पर मनुष्य स्नायु-विकार से ग्रस्त हो जाता है। वह दूसरो पर अत्याचार करने में उन्हे अपग बनाने मे रस लेता है। मनोनुशासनम् / ५५
SR No.010300
Book TitleManonushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1998
Total Pages237
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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