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________________ शरीर सीधा और समरेखा मे रहे, इसका अभ्यास कीजिए। इसमे दोनो पैरों को सटा कर रखिए। समय-कम से कम तीन मिनट और सुविधानुसार यह घटो तक किया जा सकता है। फल-१. शारीरिक धातुओ का साम्य २. शुद्ध रक्त का सचार ३. मानसिक एकाग्रता। एकपाद विधि-सीधे खडे हो जाइए। उक्त विधि के अनुसार शरीर के सव अवयवों को समरेखा मे ले आइए। फिर एक पैर को उठाकर सीधा फैला दीजिए। प्रारम्भ मे ऐसा करना कठिन होता है, इसलिए दीवार के सहारे खड़े होकर भी यह आसन किया जा सकता है। समय-प्रारम्भ में एक या दो मिनट। अभ्यास परिपक्व होने पर सुविधानुसार जितना किया जा सके। फल-पैर, कमर, जघा, पीठ और गले के स्नायुओ की शुद्धि। गृध्रोड्डीन विधि-पैरों को सटाकर सीधे खडे हो जाइए। फिर कन्धो की समरेखा मे दोनों हाथो को फैला दीजिए। बीच-बीच मे गीध के परो की भाति दोनो भुजाओं को हिलाइए। ___समय-इसके समय की निश्चित मर्यादा नही है। सुविधानुसार जितना किया जा सके, उतने समय तक यह करणीय है। फल-१. भुजा के स्नायुओ की शक्ति का विकास। २. गर्दन के ऊपर के स्नायुओ की पुष्टि। कायोत्सर्ग प्रवृत्ति के तीन स्रोत है-काय, वाणी और मन। इसमें मुख्य काय है। वाणी और मन उसके माध्यम से ही प्रवृत्त होते है। काय के स्पन्दनकाल में वाणी और मन प्रस्फुटित होते है। उसकी अस्पन्द दशा में वे विलीन मनोनुशासनम् । ५३ .
SR No.010300
Book TitleManonushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1998
Total Pages237
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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