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________________ १. दण्डायतशयन ६. ऊर्ध्वशयन २. आम्रकुब्जिकाशवन ७ लकुटासन ३. उत्तानशयन ८. मत्स्यासन ४. अवमस्तकशवन ६. पवनमुक्तासन ५. एकपावशयन १०. भुजंगासन ११.धनरासन। ११. सर्वांगासन और शीर्षासन में विपरीतकरणी वाले स्थान है। ध्यान और आसन आसन साधना का एक अपरिहार्य अंग है। आचार्य कुन्दकुन्द का अभिमत है कि जो व्यक्ति आहार-विजय, निद्रा-विजय और आसन-विजय को नहीं जानता, वह जिनशासन को नहीं जानता। आसन-विजय का अर्थ है-एक आसन में घंटों तक बैठने का अभ्यास कर लेना। महर्षि पतंजलि का अभिमत है कि आसन से द्वन्द्व पर विजय प्राप्त की जा सकती है। द्वन्द्व हैं-सर्दी गर्मी आदि। आसन से कष्ट-सहिष्णुता की शक्ति विकसित होती है, इसलिए द्वन्द्व आसनकर्ता को पराजित नहीं कर सकते। आसन के वर्ग अपेक्षाभेद से आसनों के दो वर्ग होते हैं : प्रथम वर्ग-१. खड़े होकर किए जाने वाले २. बैठकर किए जाने वाले ३. लेटकर किए जाने वाले। द्वितीय वर्ग-१. शरीरासन २. ध्यानासन खड़े होकर किए जाने वाले आसन समपाद विधि-सीधे खड़े हो जाइए। गर्दन, पृष्ठवंश और पैर तक का सारा ५२ / मनोनुशासनम्
SR No.010300
Book TitleManonushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1998
Total Pages237
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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