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________________ दूसरा प्रकरण १ मूढ़-विक्षिप्त-यातायात-श्लिष्ट-सुलीन-निरुद्धभेदाद् मनः षोढा। २. दृष्टिचरित्रमोह-परिव्याप्तं मूढम् ।। ३. अनर्हमेतद् योगाय॥ ४. इतस्ततो विचरणशीलं विक्षिप्तम् ।। ५. कदाचिदन्तः कदाचिद् वहिर्विहारि यातायातम् ॥ ६. प्रारम्भिकाभ्यासकारिणे द्वयमिदम् ॥ ७. विकल्पपूर्वकं वाह्यवस्तुनो ग्रहणाद् अल्पस्थैर्य अल्पानन्दञ्च ॥ ८. स्थिरं श्लिष्टम् ॥ ६. सुस्थिरं सुलीनम् ॥ १०. द्वयमिदं संजाताभ्यासस्य योगिनः ॥ ११. वाह्यवस्तुनः अग्रहणाद् दृढस्थैर्यं महानन्दञ्च ॥ १२. मनोगतध्येयमेवास्य विषयः॥ १३. निरालम्बनं केवलमात्मपरिणतं निरुद्धम् ।। १४. इदं वीतरागस्य ॥ १५. सहजानन्दप्रादुर्भावः॥ १. मन छह प्रकार का होता है१. मूढ ४. श्लिष्ट २. विक्षिप्त ५. सुलीन ३. यातायात ६ निरुद्ध २. जो मन दृष्टिमोह (मिथ्यादृष्टि) तथा चरित्रमोह (मिथ्या आचार) से परिव्याप्त होता है, उसे मूढ कहा जाता है। ३. मूढ़ संज्ञावाला मन योग-साधना के योग्य नही होता। जिसकी दृष्टि सम्यग् नही होती, जिसका चरित्र यम-नियम युक्त नहीं मनोनुशासनम् / २६
SR No.010300
Book TitleManonushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1998
Total Pages237
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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