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________________ ३. अप्रयत्न-मन को स्थिर करने का बलात् प्रयत्न मत कीजिए। अप्रयत्न से मन सहज ही शान्त हो जाता है। शरीर को स्थिर और श्वास को मन्द कीजिए। जैसे-जैसे शरीर स्थिर और श्वास मन्द होगा, वैसे मन अपने आप शान्त हो जाएगा। ४. श्वास-योग-मन का श्वास की गति के साथ योग कीजिए। श्वास के आने-जाने के क्रम पर ध्यान लगाइए, श्वास की गिनती कीजिए, मन अपने आप श्वास मे लीन हो जाएगा। ५. आकृति-आलम्बन-अपने आराध्य की आकृति का मानसिक चित्र बनाइए। पहले देश-काल और बाह्य वातावरण के साथ उस आराध्य की आकृति की कल्पना कीजिए, फिर उसे मानसिक चित्र मे वदल दीजिए। वह चित्र बहुत स्पष्ट और प्राणवान जैसा कीजिए। यदि प्रारम्भ मे ऐसा करना कठिन लगे तो दृश्य आकृतियो पर मन को स्थापित कीजिए और साथ-साथ मानसिक चित्र बनाने का अभ्यास भी करते रहिए। ६. शब्द-आलम्बन-इष्ट मत्रो मे मन को लगाइए। मन का प्रवाह शब्द की दिशा में प्रवाहित होकर अन्य विकल्पो से शून्य हो जाता है। जप की प्रक्रिया मे इसे विस्तार से बताया जाएगा। ७. दृढ़ इच्छा-शक्ति-इच्छा-शक्ति भावो से उत्पन्न होती है। भावो की प्रबलता का नाम ही इच्छा-शक्ति है। भावो को इच्छा-शक्ति के रूप मे वदलने का साधन है-स्वत सूचना (Auto Suggestion)। मन को सूचना देने से भावो मे उत्तेजना आरम्भ होती है और वही इच्छा-शक्ति के रूप में परिणत हो जाती है। इच्छा-शक्ति के विकास का निरन्तर अभ्यास करने से वह दृढ हो जाती है। दृढ़ इच्छा-शक्ति से मन की एकाग्रता सहज ही सध जाती है। २५ मिथ्यादृष्टिरविरतिः प्रमादः कषायो योगश्च परमाणुस्कन्धाकर्षणहेतवः ॥ २६ सम्यग्दृष्टिर्विरतिरप्रमादोऽकषायोऽयोगश्च तद्विकर्षणहेतवः। २५. मिथ्यादृष्टि, अविरति, प्रमाद, कषाय और योग (मन, वाणी तथा शरीर की प्रवृत्ति) के द्वारा आत्मा के साथ परमाणु-स्कन्धो का सयोग होता है। २६. सम्यग्दृष्टि, विरति, अप्रमाद, अकपाय और अयोग (मन, वाणी मनोनुशासनम् / २५
SR No.010300
Book TitleManonushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1998
Total Pages237
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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