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________________ उसका आवरण पतला हो जाता है तव मानसिक स्तर का विकास होता है। जव वह वहुत क्षीण या पूर्णत विलीन हो जाता है तब अतीन्द्रिय स्तर का विकास होता है। हम लोग इन्द्रिय और मन के स्तर पर ज्ञान कर रहे है इसलिए अतीन्द्रिय ज्ञान की कल्पना नही कर पाते। इन्द्रिय स्तर पर काम करने वाला क्या मानसिक स्तर की कल्पना कर सकता है ? हम उत्तरवर्ती विकास की कल्पना नही कर सकते, उसका हेतु हमारी अपूर्णता है। हम अपनी पूर्णता का अनुभव कर अतीन्द्रिय स्तर की परिकल्पना से दूर नही रह सकते। चेतना के पहले दो स्तर परोक्ष होते है। उसका तीसरा स्तर प्रत्यक्ष होता है। ज्ञान वस्तुतः परोक्ष नही होता किन्तु उसकी पद्धति परोक्ष भी वन जाती है। ऐन्द्रियक स्तर पर हम ज्ञेय को इन्द्रियो के माध्यम से जानते है, साक्षात् नही जानते इसलिए हमारा वह ज्ञान परोक्ष होता है। कल्पना, चितन और मनन मे कल्पनीय, चिन्तनीय और मननीय वस्तु का साक्षात् सम्पर्क नही होता इसलिए मानसिक स्तर का ज्ञान भी परोक्ष होता है। प्रत्यक्ष ज्ञान वह होता है, जहा जाता ज्ञेय को साक्षात् जानता है-शारीरिक या पौद्गलिक उपकरणो की सहायता लिये बिना जानता है। साधना का उद्देश्य है-परोक्षानुभूति की भूमिका को पार कर प्रत्यक्षानुभूति की भूमिका मे प्रवेश करना, चेतना के आवरण को विलीन कर उसे अनावृत करना। चेतना का अनावरण होने पर हमारी साधना सफल हो जाती है। ___ परोक्ष और प्रत्यक्ष ज्ञान की भेदरेखा तीन विन्दुओ से बनी है। परोक्ष ज्ञान का विपय है : स्थूल, अव्यवहित और निकटवर्ती वस्तु । प्रत्यक्ष का विपय है . स्थूल या सूक्ष्म, व्यवहित या अव्यवहित, दूर या निकटवर्ती वस्तु । परोक्ष ज्ञान मनन और शास्त्र (शब्दज्ञान) के माध्यम से होता है। प्रत्यक्ष ज्ञान के तीन प्रकार है-अवधिज्ञान, मन पर्यायज्ञान और केवलज्ञान। चेतना की पूर्ण अनावृत दशा का नाम केवलज्ञान है। उसके द्वारा भौतिक और अभौतिक, मूर्त और अमूर्त सभी प्रकार के ज्ञेय जाने जाते है। अवधि और मन.पर्याय के द्वारा केवल भौतिक और मूर्त द्रव्य ही जाने जाते है। अवधिज्ञान से हम भीत से परे की वस्तु जान सकते है। किन्तु अभौतिक ज्ञेय को नही जान सकते। मनःपर्याय ज्ञान के द्वारा हम चितन मे प्रयुक्त मनोनुशासनम् । ६
SR No.010300
Book TitleManonushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1998
Total Pages237
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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