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________________ के लाडनू चातुर्मास में मेने आचागग का अनुनाद म किया। उनके ध्यान सूत्रो की ओर दृष्टि आकर्पिन हुई। वह गामक शनी में लिया हुआ आगम है। उसमे ध्यान के सूत्र पकर में आग, किन्तु उनकी अभ्यास-पद्धति परम्पग के अभाव में कंसं पकड़ी जा सकती थी ? मारि पतजलि के 'योगसूत्र और बोद्धो के 'विशुद्धिमग' के आलोक में आचागग के 'ध्यानसूत्रो की अभ्यास-पद्धति को समझाने का प्रयल किया गया और उसमे कुछ सफलता मिली। वि. सं. २०३१ मे 'अध्यान्न साधना केन्द्र दिल्ली मे सत्यनारायणजी गोयनका ने 'विपश्यना ध्यान शिविर का आयोजन किया। उसमे अनेक साधु-साध्वियों ने भाग लिया। में भी उस मम्मिलित था। उस शिविर मे हम लोग 'आनापानसती' और 'विपश्यना' का पयोग कर रहे थे। मै प्रयोग के साथ-साथ अपने प्रश्न का समाधान भी खोज रहा था और उससे कुछ समाधान मिला भी। जेन और बांद-टोनी एक ही श्रमण परम्परा के अंग है। भगवान महावीर और भगवान बुद्ध-दोनों सम-सामयिक है। दोनों की ध्यानपद्धति में साम्य है। राग-द्वेप के मल को क्षीण कर चित्त को निर्मल वनाना और चेतनिक निर्मलता के द्वारा चेतना को जागृत करना, दोनो परम्पराओं को इष्ट है। बौद्ध परम्परा में ध्यान शाखा का अस्तित्व उपदेश शाखा से स्वतन्त्र रहा, इसलिए उसमे ध्यान के अभ्यास की पद्धति अविच्छिन्न रूप से चलती रही। जैन परम्परा मे ध्यान की कोई स्वतन्त्र शाखा नही रही, इसलिए उसके ध्यानसूत्रों की अभ्यास-पद्धति विच्छिन्न हो गयी। उस विच्छिन्न अभ्यास-पद्धति को समझने मे विपश्यना ध्यान का प्रयोग बहुत सहायक सिद्ध हुआ। गोयनकाजी जैसे साधना-सिद्ध, उदारमना और ऋजु-प्रकृति के व्यक्ति से विपश्यना के रहस्यो को समझने मे और अधिक सहायता मिली। उसी वर्प (वि. स. २०३१) लाडनू मे तुलसी अध्यात्म नीडम्, जैन विश्व भारती के तत्त्वावधान मे फिर बीस दिवसीय विपश्यना ध्यान शिविर आयोजित किया गया। उसमे सौ से अधिक साधु-साध्विया सम्मिलित थी। वीस दिन के निरन्तर अभ्यास से जहां विपश्यना की गहराई मे उतरने का अवसर मिला, वहा उसके अन्तस्थल की गहराई को समझने का भी मौका मिला। जैन परम्परा के ध्यान-सूत्रो की अभ्यास पद्धति और अधिक स्पष्ट हो गई। हमने साधना की सभी पद्धतियो-हठयोग, तन्त्रशास्त्र, शैव, शाक्त, राजयोग आदि का १७० / मनोनुशासनम्
SR No.010300
Book TitleManonushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1998
Total Pages237
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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