SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 191
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रकाशित है। भगवान् महावीर की पचीसवी निर्वाण शताब्दी के वर्ष में 'महावीर की साधना का रहस्य' पुस्तक प्रकाशित हुई। ये सारे प्रयत्न उसी प्रश्न का उत्तर पाने की दिशा में चल रहे थे। उस प्रश्न का बीज विक्रम संवत् २०१२ के उज्जैन चातुर्मास मे बोया गया था। वहां आचार्यश्री के मन मे साधना विषयक नये उन्मेष लाने की बात आयी। 'कुशल-साधना'-इस नाम से कुछ अभ्यास-सूत्र निर्धारित किये गए और साधु-साध्वियो ने उनका अभ्यास शुरू किया। साधना के क्षेत्र में यह एक प्रथम रश्मि थी। उससे वहुत नही, फिर भी कुछ आलोक अवश्य मिला। उसके पश्चात् अनेक छोटे-छोटे प्रयत्न चलते रहे। वि. स. २०२० की सर्दियों में मर्यादा महोत्सव के अवसर पर 'प्रणिधान कक्ष' का प्रयास किया गया। उस दस दिवसीय साधनासत्र मे काफी बड़ी संख्या में साधु-साध्वियों ने भाग लिया। उसमे 'जैन योग' पर काफी चर्चा हुई। भावक्रिया के विशेष प्रयोग किए गए। उस चर्चा का संक्षिप्त संकलन 'तुम अनन्त शक्ति के स्रोत हो' पुस्तक मे प्राप्त है। कई शताब्दियों से पहले विच्छिन्न ध्यान-परम्परा की खोज के लिए ये सभी प्रयत्न पर्याप्त सिद्ध नहीं हुए। जैसे-जैसे कुछ रहस्य समझ मे आते गए, वैसे-वैसे प्रयत्न को तीव्र करने की आवश्यकता अनुभव होती गयी। वि. सं. २०२६ मे लाडनू मे एकमासीय साधना-सत्र का आयोजन किया गया। उसके वाद चूरू, राजगढ, हिसार और दिल्ली-इन चारो स्थानो मे दस-दस दिवसीय साधना-सत्र आयोजित किए गए। ये सभी साधना-सत्र 'तुलसी अध्यात्म नीड्म' जैन विश्वभारती के तत्त्वावधान मे और आचार्य तुलसी के सान्निध्य में सम्पन्न हुए। इन शिविरो ने साधना का पुष्ट वातावरण निर्मित किया। अनेक साधु-साध्वियां तथा गृहस्थ ध्यानसाधना मे रुचि लेने लगे। अनेक साधु-साध्विया इस विपय मे विशेष अभ्यास और प्रयोग भी करने लगे। इन बहु-आयामी प्रयत्नो के द्वारा भावक्रिया, कायोत्सर्ग, अनुप्रेक्षा, भावना-ये विषय उत्तोरत्तर स्पष्ट होते गए, किन्तु ध्यान का विपय उतना स्पष्ट नही हुआ जितना कि होना चाहिए था। ध्यान के सूत्र हाथ लगे पर उनका अर्थ हाथ नही लगा। गुरुमुख से जो अर्थ समझाया जाता था। जो पद्धति सिखायी जाती थी, वह प्राप्त नहीं हो सकी। वि. स. २०२५ मनोनुशासनम् / १६६
SR No.010300
Book TitleManonushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1998
Total Pages237
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy