SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 183
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ .७. भाव-क्रिया अपनी दैनिक प्रवृत्तियो मे भाव-क्रिया का अभ्यास करे-वर्तमान क्रिया मे तन्मय रहने का अभ्यास करे। जैसे-चलते समय केवल चलने का ही अनुभव हो, खाते समय केवल खाने का, इत्यादि। जो क्रिया करे उसकी स्मृति बनी रहे। द्वितीय भूमिका १. प्रेक्षा-ध्यान - (क) श्वास-प्रेक्षा-प्रेक्षा-ध्यान सूक्ष्म श्वास के साथ-कायोत्सर्ग मुद्रा मे सुखासन या पद्मासन मे स्थित हो सूक्ष्म श्वास-प्रेक्षा का अभ्यास करे। समय-दस मिनट से एक घंटा तक। (ख) प्रकम्पन प्रेक्षा-सिर से लेकर पैर तक क्रमश शरीर के प्रत्येक अवयव मे सूक्ष्म श्वास के साथ प्रकम्पन पैदा करे और उनकी प्रेक्षा करे। समय-पाच मिनट से एक घटा तक। १ प्रेक्षा-ध्यान की प्रथम भूमिका के साधक के लिए निम्नलिखित चर्या आटि का पालन आवश्यक होगा१ आहार-सयम (क) परिमित भोजन। (ख) मादक, उत्तेजक और गरिष्ठ भोजन का वर्जन (जैसे-औपध आदि के अतिरिक्त लहसुन, प्याज आदि उत्तेजक, भाग आदि। मादक तथा मैदा, मावा, तली हुई खाद्य-सामग्री आदि गरिष्ठ भोजन का वर्जन। २ वाणी-सयम-प्रतिदिन कम से कम दो घटे मौन। ३ निद्रा-संयम-प्रतिदिन छ या सात घटे से अधिक निद्रा का वर्जन। ४ व्रत-साधना-अणुव्रत या व्रत-दीक्षा। ५ स्वाध्याय-साधना-विषयक ग्रथो का प्रतिदिन नियमित स्वाध्याय करना ६ आसन प्रयोग-निम्नलिखित आसनो का अभ्यास उपयोगी होगा १ सर्वांगासन, २ हलासन, ३ मत्स्यासन, ४ भुजगासन, - ५ पश्चिमोत्तानासन, ६ योगमुद्रा, ७ कायोत्सर्गासन (दस मिनट तक)। मनोनुशासनम् / १६१
SR No.010300
Book TitleManonushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1998
Total Pages237
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy