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________________ सकल्प शुद्धि का अभ्यास सहायक हो सकता है। २६. शयनकाले सत्संकल्पकरणम्॥ २७. ते च -ज्योतिर्मयोऽहं आनन्दमयोऽह स्वस्थोऽहं निर्विकारोऽहं वीर्यवानहं इत्यादयः॥ २८. निद्रामोक्षे जपो ध्यानञ्च॥ २६ परानिष्टचिन्तनेन मनोविघातः।। ३० आत्मौपम्यचिन्तया मनोविकासः।। २६ सोते समय पवित्र सकल्प करने चाहिए। २७. मै ज्योतिर्मय हू, आनन्दमय हू, स्वस्थ हू, निर्विकार हू, वीर्यवान् हू-आदि-आदि सत्सकल्प है। संकल्प करते समय मन स्थिर और पवित्र होना चाहिए। २८. नींद टूटते ही जप और ध्यान करना चाहिए। २६. दूसरो की अनिष्ट चिन्ता करने से मन की शक्ति का हनन होता है। ३० आत्मौपम्य (प्राणी मात्र को अपने समान मानकर) चिन्तन करने से मन का विकास होता है। संकल्प मानसिक विकास के अनेक साधन है। उनमें दृढ संकल्प भी एक साधन है। दृढ सकल्प का व्यक्ति के जीवन पर सीधा असर होता है। उससे व्यक्ति के सस्कारो का निर्माण होता है। मन मे अच्छे विचार जागते है, तब व्यवहार पर भी अच्छाई का प्रतिबिम्ब पडता है। किसी के प्रति बुरी भावना उठती है, तो उसका परिणाम भी लम्बे समय तक भुगतान पडता है। प्रत्येक व्यक्ति मे मानवीय दुर्बलताए होती है। किसी मे क्रोध, किसी मे ईर्ष्या तो किसी मे आग्रह आदि-आदि। वृत्तियो की शुद्धि के लिए सकल्प सीधा मार्ग है। सकल्प की साधना करने वाला इन सूत्रो पर ध्यान दे । (क) सकल्प दृढ निष्ठा व विश्वास के साथ करना चाहिए-मै यह काम कर सकता हूं, यह काम होकर रहेगा। १४८ / मनोनुशासनम्
SR No.010300
Book TitleManonushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1998
Total Pages237
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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