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________________ सकल्प इतनी तन्मयता से कीजिए कि वैसा प्रत्यक्ष अनुभव होने लगे। जितनी देर सुविधा से कर सके, यह सकल्प कीजिए। फिर पूरक कीजिए-श्वास को अन्दर भरिए । पूरक की स्थिति मे मूलवन्ध कीजिए-गुदा को ऊपर की ओर खींचिए तथा जालन्धरबन्ध कीजिए-ठुड्डी को तानकर कण्ठकूप मे लगाइए। फिर पेट को सिकोड़िए और फुलाइए। आराम से जितनी वार ऐसा कर सके, कीजिए, फिर रेचन कीजिए। यह एक क्रिया हुई। इसे अभ्यास बढाते-बढ़ाते सात या नौ बार दोहराइए। (ख) पीठ के बल चित लेट जाइए। सिर, गर्दन और छाती को सीध मे रखिए। शरीर को विलकुल शिथिल कीजिए। मुह को वन्द कर पूरक कीजिए। पूरक करते समय यह संकल्प कीजिए कि काम-शक्ति का प्रवाह जननेन्द्रिय से मुडकर मस्तिष्क की ओर जा रहा है। मानसिक चक्षु से यह देखिए कि वीर्य रक्त के साथ ऊपर जा रहा है। कामवाहिनी (जननेन्द्रिय के आस-पास की) नाडिया हल्की हो रही है और मस्तिष्क की नाडिया भारी हो रही हैं। पूरक के वाद अन्त कुम्भक कीजिए-श्वास को सुखपूर्वक अन्दर रोके रहिए। फिर धीमे-धीमे रेचन कीजिए। पूरक और रेचन का समय समान और कुम्भक का समय उससे आधा होना चाहिए। यह क्रिया वढाते-वढाते पन्द्रह-बीस बार तक करनी चाहिए। वीर्य के उर्ध्वारोहण का सकल्प जितना दृढ और स्पप्ट होगा, उतनी ही काम-वासना कम होती जाएगी। कुक्कुटासन ____ इससे काम-वाहिनी स्नायुओ पर दबाव पड़ता है। उससे मन शक्तिशाली और प्रशान्त होता है। काम-वासना क्षीण होती है। मन की स्थिरता होने से वायु की स्थिरता होती है। वायु की स्थिरता से वीर्य की स्थिरता होती है। वीर्य की स्थिरता से शरीर की स्थिरता प्राप्त होती है। कहा भी है . मन-स्थैर्यात् स्थिरो वायुस्ततो बिन्दु स्थिरो भवेत् । बिन्दुस्थैर्यात् सदा सत्त्वं, पिण्डस्थैर्य च जायते॥ ऊर्ध्वाकर्पण की प्रक्रिया केवल पुरुपो के लिए है। स्त्रियो के लिए मनोनुशासनम् / १४७
SR No.010300
Book TitleManonushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1998
Total Pages237
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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