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________________ दिशा की ओर मुह कर ध्यान करे। ६. अथवा पद्मासन आदि लगाकर ध्यान करना चाहिए। .. ध्यान-मुद्रा ध्यान की परिपक्वता होने के पश्चात् चाहे जिस मुद्रा मे ध्यान किया जा सकता है, किन्तु जव तक उसका अभ्यास परिपक्व नही होता, तव तक कुछ निश्चित मुद्राओ मे बैठकर ध्यान करना उपयोगी होता है। ध्यान खडे होकर भी किया जा सकता है और वैठकर भी किया जा सकता है। खडे होकर ध्यान करने की मुद्रा को कायोत्सर्ग कहा जाता है। उसका निश्चय शारीरिक और मानसिक सम्वन्ध के आधार पर किया गया है। प्रस्तुत मुद्रा में मुख्य वाते ये है । १ शरीर का आगे की ओर थोडा-सा झुका हुआ होना। २ आंखो को मूटना या अधखुली रखना। इन्द्रियो का सयम करना। शरीर को स्थिर रखना। भुजाओ को लटकाकर घुटने से सटाए रखना। पैरो की एडियो को सटाए व दोनो पजो के वीच चार अगुल का अन्तर रखना। ७ पूर्व या उत्तर दिशा के अभिमुख होना।। ध्यानकाल में शरीर सीधा होना चाहिए। यह ध्यान का सामान्य नियम है। आगे की ओर थोडा झुकने का अर्थ उस नियम का अतिक्रमण नहीं है। मानसिक एकाग्रता के साथ श्वास का गृहरा सम्बन्ध है। फेफडे और गले को थोडा आगे झुकाने से श्वास के समीकरण की सुविधा होती है। इस दृष्टि से इसका बहुत महत्त्व है। मानसिक एकाग्रता के लिए आखो का सयम होना अत्यन्त अनिवार्य है। चंचलता की वृद्धि मे उनका बहुत वडा योग है। आंखे मूट लेने पर चाक्षुप एकान्त हो जाता है। उन्हे अधखुला भी रखा जा सकता है। नासाग्र या किसी चक्र पर एकाग्र किया जाए तो उन्हे खुला भी रखा जा सकता है। ध्यान मे कंवल चाक्षुप एकान्त ही अपेक्षित नहीं किन्तु सभी इन्द्रियो का एकान्त होना आवश्यक है। इसी तथ्य को ध्यान में रखकर ध्याता के K मनोनुशासनम् ६५
SR No.010300
Book TitleManonushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1998
Total Pages237
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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