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(३३) विषम पगारएहिं ।। नचिनण अंग हारएहिं वैदिप्राय जस्स ते सुवि कमा कमा तयं तिलोय सब सत्त संति कारयं ॥ पसंत सब पाव दो समेत ई नमामि संति मुत्तमं जि णं ॥ ३१ ॥ नारायन । उत्त चामर पमाग जूव जव मंमिश्रा जय वर मगर तुरय लिरिवह सुलंगगा ॥ दीव समुद्द मंदर दिसागय सोहिया सहि वसद सीहरह चक्क वरंकि या ॥ पागंतर ॥ सिरिवछ सुलंट णा ॥३२॥ ललिययं ॥ सहाव लठा सम प्पश्चा, अदोस उठा गु