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(१३) ययं ॥ तं च जिणुतम मुत्तम नित्तम सत्तधरं, अजव महवखंति विमुत्ति समाहि निहिं ।। संतिकरं पणमामि दमुत्तम तिबयरं, संति मुणी मम संति समाहिवरं दिसन ॥णा सोवा गयं ।। सावधि पुत्व पबिवं च वर दलि मबय पसह विचिन्न संथिय ।। घिर सरिक वडं मयगल लीलाय माग वर गंधदवि पवाय पबियं सं थ वारिहं ।। हलि हब बाहु धंत क गग रुअग निरुवहय पिंजरं, पवर लरकणो वचिय सोम चारुरूवं सुइ सुह मानिराम परम रमणिय