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गानोग्रं॥ जे संजरंति मणुप्रा, न कुण जलगो नयं तसिं ॥ ७ ॥ बिलसंत लोग नीसण, फुरिया रुण नपण तरल जीहालं ॥ नग्ग नुअंग नवजल, य सञ्चहं नीसणा यारं ॥ ॥ मन्नति कोम सरिसं, दूर परिचुदविसम विसवेगा ॥ तुद नामरकर फुमति, इमंतगुरुपानरालोए ॥ ॥ अमवासु लिल्ल त कर, पुलिंद सदूल सदनीमासु ॥ नयविहुर वुन कायर, नल्लरिय पनि सवासु ॥ १७ ॥ अविलुत्त विहवसारा, तुद नाह पशाम मत्त