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________________ [ ७६ सम्यक्ज्ञान विचार, पाठ भेद पूजो सदा ॥५॥ ॐ ह्री अष्टविघसम्यग्ज्ञानाय नैवेद्य निर्वपामीति स्वाहा। दीपज्योति तमहार, घट पट परकाश महा। सम्यक्ज्ञान विचार, पाठ भेद पूजो सदा ॥६॥ ॐ ह्री अष्टविधसम्यग्ज्ञानाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा। धूप घ्राण सुखकार, रोगविघन जड़ता हरै। सम्यक्ज्ञान विचार, आठ भेद पूजो सदा ।।७।। ॐ ह्री अष्टविघसम्यग्ज्ञानाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा। श्रीफल आदि विथार, निहचे सुरशिवफल करें। सम्यक्ज्ञान विचार, पाठ भेद पूजो सदा ॥८॥ ॐ ह्री अष्टविधसम्यग्ज्ञानाय फल निर्वपामीति स्वाहा जल गन्धाक्षत चारु, दीप धूप फल फूल चरु । सम्यक्सान विचार, पाठ भेद पूजों सदा ॥॥ ह्री अष्टविधसम्यग्ज्ञानाय अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा । ___ जयमाला हा-आप आप जाने नियत, ग्रन्थ पठन व्योहार । संशय विभ्रम मोह विन, अष्टमग गुनकार ॥१॥ चौपाई मिश्रित गीता छन्द सम्यक्ज्ञान रतन मन भाया । आगम तीजा नैन बताया ।। मक्षर प्ररथ शुद्ध पहिचानो । अक्षर अरथ उभयसग जानो। जानों सुकाल पठन जिनागम, नाम गुरु न छिपाइये । तपरीति गहि बहु मान देके, विनय गुन चित लाइये ।।
SR No.010298
Book TitleJain Stotra Puja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeer Pustak Bhandar Jaipur
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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