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________________ ४० ] जय लक्ष्य लक्ष्य सुलक्ष्यफ हो, जय दक्षक पक्षक रक्षक हो। पण प्रक्ष प्रत्यक्ष खपायक हो, सव० ॥१२॥ निरभेद अखेद अछेद सही, निरवेद अवेदन वेद नहीं । सबलोक अलोकहि ज्ञायक हो, सब० ॥१३।। अमलीन अदीन मरीन हने, निजलीन अधीन प्रछीन बने । जमको घनघात बचायक हो, ब० ॥१४॥ न अहार निहार विहार कवै, अविकार अपार उदार सबै । जगजीवन के मन भायक हो. सव० ॥१५॥ अप्रमाद प्रमाद सुस्वादरता, उनमाद विवाद विषादहता । . समता रमता अकषायक हो, सब० ॥१६॥ असमंध प्रघंद प्ररन्ध भये, निरवन्य प्रवन्ध अगन्ध ठये । अमनं अतनं निरवायक हो, सब० ॥१७॥ निरवर्ण प्रकरण उघरा बली, दुखहणे अशर्ण मुकर्रा भली । बलि मोह को फौज भगायक हो, सब० ॥१८॥ अविरुद्ध अक्रुद्ध प्रजुद्ध प्रनू. प्रतिशुद्ध प्रशुद्ध समृद्ध विनू । परमातम पूरन पायक हो, सब० ॥१६॥ विररूप चिद्र प-स्वरूप युती, जसकूप अनूपम भूप भुती। कृतकृत्य जगत्त्रयनायक हो. सब० ॥२०॥ सब इष्ट प्रभीष्ट विशिष्ट हितू, उतकिट वरिट गरिष्ट मितू । शिव तिष्टत सर्व सहायक हो, सबः ॥२१॥ जय श्रीधर बीघर श्रीवन हो, जय श्रोकर श्रीभर धीमर हो। जय ऋद्धि सिद्धि बढायक हो, सब० ॥२२॥
SR No.010298
Book TitleJain Stotra Puja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeer Pustak Bhandar Jaipur
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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