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________________ प्रोटक छन्द सुस सम्यग्दर्शन जान लहा, गुरु-लघु सूक्षम वीर्य महा । अवगाह अवाघ अधायक हो, सब सिद्ध नमो सुखदायफ हो । असुरेन्द्र सुरेन्द्र नरेन्द्र जजे, भुवनेन्द्र खगेन्द्र गणेन्द्र भजे । जर जामन मरण मिटायफ हो, सब० ॥३॥ अमलं प्रचल प्रकलं प्रफुलं. प्रहल असल प्ररलं प्रतुल । अरलं सरल शिवनायफ हो, सब० ॥४॥ अजर अमर अधर सुघरं, अडर प्रहरं अमर अधर । प्रपर असरं सब लायक हो, सब ॥५॥ वृपवृन्द अमन्द न निन्द लहैं, निरदन्द प्रफन्ध सुछन्द रहै। नित प्रानन्दवृन्द बघायफ हो, सब० ।।६।। भगवत सुसत प्रनतगुणी, जयवंत महंत नमत मुनी। जगजन्तु-तणे अघधायक हो, स्व० ॥७॥ प्रकलक अटक शुभकर हो निरडक निशक शिवंकर हो। अभयकर शकर क्षायक हो, सव० ।।८।। प्रतरंग प्ररंग प्रसग सदा, भवभंग प्रभग उतग सदा । सरवंग अनग नसायक हो, सब० ॥६॥ ब्रह्मण्ड जु मण्डलमण्डन हो, तिहुँ दडप्रचड विहण्डन हो । चिद पिड़ प्रखंड अकायक हो, सब० ॥१०॥ निरभोग सुभोग वियोग हरे, निरजोग प्ररोग प्रशोग घरे । भ्रमभजन तीक्षण सायफ हो, सब० ॥११॥
SR No.010298
Book TitleJain Stotra Puja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeer Pustak Bhandar Jaipur
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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