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________________ [ ३१ कालं अच्चन्ति पुज्जन्ति वन्दन्ति गमस्संति । अहमवि इह सतो तत्थ सताइ रिणच्चकाल प्रच्चेमि पुज्जेमि वन्दामि रणमस्साम । दुक्खक्खो कम्मक्खो बोहिलाहो सुगइगमरण समाहिमरणं जिरगगुणसंपत्ती होउ मज्झ ।। ( इत्याशीर्वाद । पुष्पाञ्जलि क्षिपेत् ) अथ पौर्वाल्लिक देववन्दनाया पूर्वाचार्यानुक्रमेण सकलकर्मक्षयार्थ द्रव्यपूजा-वन्दना-स्तवसमेत श्रीसिद्धभक्ति-कायोत्सर्ग करोम्यहम् । णमो अरिहतारण णमो सिद्धाण गमो पाइरियारण । णमो उवझायारणं, णमो लोए सव्वसाहूरणं ।। ताव काय पावकम्म दुच्चरिय बोस्सरामि। [ इसके अन्तर नो बार णमोकार मत्र का जाप्य करना चाहिये ] ॥अथ सिद्ध पूजा द्रव्याष्टक ॥ • अधिोरयुत सबिन्दु-सपरं ब्रह्मस्वरावेष्टितं । वर्गापूरितदिग्गताम्बुज-दल तत्सन्धि-तत्त्वान्वितं । अन्तःपत्र-तटेष्वनाहतयुत ह्रींकार-सवेष्टितं । देव ध्यायति यः स मुक्ति-सुभगो वैरोभ-कण्ठीरवः ।। ॐ ह्री श्री सिद्धचक्राधिपते । सिद्धपरमेष्ठिन् । अत्र अवतर अवतर सवौषट् । ॐ ह्री थी सिद्धचक्राधिपते ! सिद्धपरमेष्ठिन् अत्र तिष्ठ तिठ ठ ठ । ॐ ह्री श्री सिद्वचक्राधिपते । सिद्धपरमेष्ठिन् पत्र मम सन्निहितो भव भव वपट् । नोट-अगर दोपहर को पूजन करें तो पौर्वाहिक के स्थान पर मध्याह्निक और सायकाल करे तो अपरालिक बोलना चाहिये । - - -
SR No.010298
Book TitleJain Stotra Puja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeer Pustak Bhandar Jaipur
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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