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________________ । ७. ) दुख दर्द दिल का मापसे जिसने कहा सही । मुश्किल कहर बहर से लई है भुजा गही ।। सब वेद प्रौ पुराण मे प्रमाण है यही । पानंदकंद श्री जिनेन्द्रदेव है तुही ।वीन.२॥ हाथी पं चढ़ी जाती थी सुलोचना सती । गगा मे ग्राह ने गही गजराज की गति । उक्त वक्त मे पुकार किया था तुम्हें सती । भय टार के उबार लिया हो कृपापती हो बोन..३। पावक प्रचण्ड कुण्ड में उमण्ड जन रहा । सीता से शपथ लेने को तब रामने कहा । तुम ध्यान घर जानकी पग धारती तहाँ । तत्काल ही सर स्वच्छ हुआ कमल लहलहा दोन ।४ जब द्रौपदी का चीर दुःशासन ने था गहा । सवही सभाके लोग कहते थे ह हा ह हा । उस वक्त भोर पोरमे तुमने करी सहा । पडदा ढका सती का सुयश जगत में रहा हो तो..! ___सम्यक्त्व शुद्धशीलवति चंदना सती। जिसके नजीक लगती थी जाहिर रती रती । बेडी में पड़ी थीं तुम्हें जब ध्यावती हुती । तब दोर घोर ने हरी दुख द्वन्द्व को गति हो।६। श्रीपाल को सागर विषै जब सेठ गिराया। उसकी रमा से रमने को आया था नेहया। उस वक्त सकट में सतीने तुमको जो ध्याया, दुख द्वन्द्व फद मेटके यानन्द बढाया ।हो दी.७। हरिषेण की माता को जब सोत सताया। रथ जैन का तेरा तले पीछे में बताया। उस वक्त अनशन मे सती तमको जो ध्याया। चक्रोश हो सुत उसकेने रथ जैन चलाया।होदी. जब अजना सती को हमा गर्भ उजाला । तब सासुने कलक
SR No.010298
Book TitleJain Stotra Puja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeer Pustak Bhandar Jaipur
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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