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________________ महत तोहि जानके न होय वश्य काल के, न और मोहि मोखपंथ देय तोहि टालके १२३, अनन्त नित्य चित्त के अगम्य रम्य आदि हो, असख्य सर्वव्यापि विष्णु ब्रह्म हो पनादि हो। महेश कामकेतु योग-ईश योग-ज्ञान हो, अनेक एक ज्ञानरूप शुद्ध सत-मान हो ।२४। तुही जिनेश बुद्ध है सुबुद्धि के प्रमानते, __ तुही जिनेश शडुरो जगत्त्रये विधानत । तुही विधात है सही सुमोखपथ धारते, नरोत्तमो तुही प्रसिद्ध अर्थ के विचारत ॥२५॥ नमो करूं जिनेश तोहि आपदा-निधार हो, नमो करूं सुभरि भूमिलोक के सिंगार हो। नमो करूं भवाब्धि-नीर-राशि-शोख हेतु हो, नमो करूं महेश तोहि मोक्ष-पथ देतु हो ।२६। चोपाई १५ माया तुमजिन पूरन गुणगण भरे, दोष गवं करि तुम परिहरे । और देवगण प्राश्रय पाय, स्वप्न न देखे तुम फिर श्राय १२७॥ तरु अशोकतर किरन उदार. तुम तन शोभित है प्रविकार । मेघ निकट ज्यो तेज फुरंत,दिनकर दिपज्यो तिमिर निहता२ सिंहासन मरिणकिरण विचित्र, तापर कंचनवरन पवित्र । तुम तनु शोभित किरण विथार, ज्यो उदयाचल रवि तमहार कुन्द-पुहुप-सित-चमर दुरत, कनक-वरण तुम तन शोभत ।
SR No.010298
Book TitleJain Stotra Puja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeer Pustak Bhandar Jaipur
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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