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________________ युग युग से गागर मे, प्रभु! गोते नाता amil पन्द्रिय मनपदास' नभनुपार म पीने लाया। लो - T ETTERfault. जग के दीपाको अग्रता, समभा था मैने उनिगारा । मन्त्रा' नामोरे में, जो यन्ना प्रारनिमियाग। प्रतएप प्रमा! यह नश्पर चार, समपरा मनाया तेरी नानोमन पनर जलाने प्राण ॥ श्रीश्रीरामपE CfETAmarta जामं घुमाता मुभतो. यह मिया सानि नही मेरी। में राग किया परता, जब परिहातो मेरी यो नाप-करम मा भार-गण. माइयों में फरता प्राया। निज प्रनुपम गंध प्रनम' में प्रभु! परगजनाने या *सोपीय-शाम-गुम्यो माffi.fr पम् 1101 जग मे निमको निज पहना मैं वो मुझे चन देता है। मैं प्रानुन शाकुन हो रोता ग्यास हा फार यापु का। मैं गान्त निराल चैता हूँ.है कि रमा महचर मेरी। यह मोह तरफफर टूट परे, प्रभु ! मायंफ फन पूजा तेरी। *जी प्रौदेव-गास्त्र-गगन माप प्रानो कम्। क्षणभर निज ममो पो चेतन, मियामलप्तो पो देता है। कापायिफ माय यिनप्ट किये, निज प्रानन्द अमृत पीता है।" -न्द्रिय व मावि २-पौधी सेवसाग ४-गग्योति ५-६-पारण पीगि ७-माधिमा परिणमि।
SR No.010298
Book TitleJain Stotra Puja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeer Pustak Bhandar Jaipur
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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