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________________ [१३ rrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrr.mmmmmam देव-शास्त्र-गुरु की भाषा-पूजा [कवि द्यानतराय कृत । (अडिल्ल छन्द)-प्रथम देव अरिहन्त सुश्रुत सिद्धान्तजू । गुरु निर्ग्रन्थ महन्त मुकतिपुर पथजू ।। तीन रतन जग माहि सो ये भवि ध्याइये। ___. .. तिनकी भक्ति प्रसाद परम पद पाइये ॥१॥ दोहा-पूजौं पद अरिहन्त के, पूर्जी गुरुपद सार । . पूजौं देवी सरस्वती, नित प्रति प्रष्ट प्रकार ।। ॐ ह्री देव-शास्त्र-गुरु समूह । अत्र अवतर अवतर सवौषट् आह्वानम् । ॐ ह्री देवशास्त्र गुरु समूह । अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ ठ स्थापनम् । ॐ ह्री देवशास्त्र गुरु समूह । अत्र मम सन्निहितो भव भव वपट् । ॥ गीता छन्द ।। सुरपति उरगनरनाथ तिनकर, वन्दनीक सुपदप्रभा । अति शोभनीक सुवर्ण उज्ज्वल, देखि छवि मोहित सभा ।। वर नोर क्षीरसमुद्र घट भरि, अग्न तसु बहुविधि नचूं। अरिहत श्रुत सिद्धान्त गुरु, निम्रन्थ नित पूजा रचूं। .. दोहा-मलिन वस्तु हर लेत सब, जल स्वभाव मल छीन । जासों पूर्जी परमपद, देव शास्त्र गुरु तीन ॥१॥ ॐ ह्री देव-शास्त्र गुरुभ्यो जन्म जरा-मृत्यु विनाशनाय जलं निर्व० । जे त्रिजग उदरं मंझार प्रारणी, तपत अति दुद्धर खरे । तिन अहितहरन सुवचन जिनके, परम शीतलता भरे ।। तसु भ्रमर लोभित प्राण पावन, सरस चदन घसि सच्। मरिहत श्रुत सिद्धान्त गुरु निम्रन्थ 'नित 'पूजा रचू।।
SR No.010298
Book TitleJain Stotra Puja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeer Pustak Bhandar Jaipur
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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