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________________ | २०३ इन्द्रवज्रा । संपूजको को प्रतिपालको को यतीनको श्रौ यतिनायको को । राजा प्रजा राष्ट्र सुदेशको ले कीजे सुखी हे जिन शांतिको दे ॥ नग्धरा-होवं सारी प्रजाको सुख बलयुत हो धर्मधारी नरेशा । होवे वर्षा सर्प तिलभर न रहे व्याधियों का प्रदेशा || होवं चोरी न जारी सुसमय वर्ते हो न दुष्काल भारी । सारे ही देश धारं जिनवर वृषको जो सदा सौख्यकारी ॥ दोहा -घातिकर्म जिन नाश करि, पायो केवलराज । शान्ति करो सब जगत में, वृषभादिक जिनराज ॥ मदाकाता - शास्त्रों का हो पठन सुखदा लाभ सत्सगती का । सद्वृत्तो का सुजस कहके, दोष ढाकू सभी का || बोलूं प्यारे वचन हितके, श्रापका रूप ध्याऊँ । तौलौं सेऊ चरण जिनके, मोक्ष जौलौं न पाऊँ ॥ प्राय तव पद मेरे हियमे, ममहिय तेरे पुनीत चरणो मे । तबलों लीन रहौं प्रभु, जबलों पाया न मुक्ति पद मैने ॥१०॥ अक्षर पद मात्रा से दूषित, जो कुछ कहा गया मुझसे । क्षमा करो प्रभु सो सब, करुणा करि पुनि छुड़ाहु भवदुख से || हे जगबन्धु जिनेश्वर, पाऊँ तव चरण शरण बलिहारी । मरण समाधि सुदुर्लभ, कर्मों का क्षय सुबोध सुखकारी ॥१२॥ ( परिपुष्पाजलि क्षेपण ) [ यहा पर नौ वार णमोकार मंत्र जपना चाहिये ] भजन नाथ ! तेरी को फल पायो, मेरे यो निश्चय अब प्रायो पूजा
SR No.010298
Book TitleJain Stotra Puja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeer Pustak Bhandar Jaipur
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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