SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 214
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २०२ ] ( यहा नौ वार णमोकार का जाप करे ) इच्छामि भन्ते पंचगुरुभत्ति का प्रोग्गो को । तस्सा लोचे अटू महापाडिहेर सजुत्तारग अरहन्तारग । श्रट्ठगुण-सम्पगारग उड्ढलोम्मि पर्याट्टयारा सिद्धारण । श्रपवरणमा उ तजुत्तारण आइरियाण । श्रायारादिसुदरणारगोवदेसयारण उवज्झायाणं । तिरयण गुगपाल रणरयाणं सव्वसाहरा । णिच्चकाल घच्चेमि पूजेमि बदामि रामस्तामि । दुदख खम्रो कम्म खन बोहिलाओ सुगइगमरण समाहिमरण जिरणगुरणसंपत्ति होउ मज्झ । ( पुप्पाजल, इत्याशीर्वाद ) शांति पाठ भाषा [ शांति पाठ बोलते समय पुण्प क्षेपण करते रहना चाहिये ] शातिनाथ मुख शशि उनहारी शील गुरणव्रत सयमधारी । लखन एकसौमाठ बिराजे, निरखत नयन कमलदल लाजै ॥ पंचम चक्रवति पदधारी, सोलम तीर्थङ्कर सुखकारी । इन्द्र नरेन्द्र पूज्य जिन नायक, नमो शातिहित शांतिविधायक दिव्य विटप पुहुपन की वरषा, दुन्दुभि श्रासन वारणी सरसा । छत्र चमर भामण्डल भारी, ये तृव प्रातिहार्य मनहारी ॥३॥ शांति जिनेश शाति सुखदाई, जगतपूज्य पूर्जी शिरनाई । परम शांति दोर्जे हम सबको, पढ़ें तिन्हे पुनि चार संघको १४॥ बसन्ततिलका - पूजै जिन्हे मुकुट हार किरीट लाके । इन्द्रादि देव श्ररु पूज्य पदाब्ज जाके ॥ सो शान्तिनाथ वरवंश जगत्प्रदीप | मेरे लिये कराह शांति सदा अनूप ॥ ५ ॥
SR No.010298
Book TitleJain Stotra Puja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeer Pustak Bhandar Jaipur
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy