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________________ १९८ ] घनन घनन घन घण्ट बजे, दम दम दम दृम मिरदङ्ग सजे । गगनागन-गर्भगता सुगता, ततता ततता अतता वितता ।।६।। धृगतां धृगता गति बाजत है, सुरताल रसाल जु छाजत है। सननं सनन सननं नभ मे, इकरूप अनेक जु धारि भ्रमै ।७। केइ नारि सुवीन बजावति हैं, तुमरो जस उज्ज्वल गावति हैं करताल विर्ष करताल धरै, सुरताल विशाल जु नाद करे ।। इन आदि अनेक उछाह भरी, सुर भक्ति करै प्रभुजी तुमरी। तुमही जगजीवन के पितु हो, तुमही विन कारनत हितु हो। तुमही सब विघ्न विनाशक हो, तुमही निज प्रानन्द भासन हो तुमही चित चितित दायक हो,जगमाहि तुमही सब लायकहो१० तुमरे पन मङ्गल मांहि सही, जिय उत्तम पुण्य लियो सबही। हमको तुमरी शरणागत है, तुमरे गुनमे मन पागत है ।११। प्रभु मो हिय पाप सदा बसिये, जबलों वसु कर्म नहीं नसिये तबलो तुम ध्यान हिये वरतो, तबलो श्रुचितन चित्तरतो १२ तबलों सत सङ्गति नित्त रहो, तबलो मम सयम चित्तगहो १३ । जबलो नहिं नाशकरौं अरिको शिवनारि वरो समताधरिको यह यो तबलो हमको जिनजी, हम जाचतु हैं इतनी सुनजी १४ (घत्ता)-श्रीवीर जिनेशा,नमतसुरेशा, नागनरेशा, भगति भरा। 'वृन्दावन' ध्यावे, विघन नशावे, वांछित पावै, शर्मवरा ।१५॥ ॐ ह्री श्री महावीर जिनेन्द्राय महायं निर्वपामीति स्वाहा । दोहा-श्रीसन्मति के जुगलपद, जो पूजे धरि प्रीत । "वृन्दावन" सो चतुर नर, लहै मुक्नि नवनीत ।। इत्याशीर्वाद
SR No.010298
Book TitleJain Stotra Puja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeer Pustak Bhandar Jaipur
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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