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________________ | १९७ कार्तिक श्याम श्रमावस शिव तिय पावापुरते वरना । गएफरिणवृन्द जज तित बहुविधि मैं पूजों भव हरना । मौ० *ली कानिककृष्णामावस्या मोक्षमगलम डिताय धीमहावीरजिनेन्द्रार अर्घ्य नियंपामीति स्माहा। जयमाला (छन्द इरिगीता) गरणघर प्रसनिघर चक्रधर हरघर गदाधर परवदा । अरु चापधर विद्यासुधर, त्रिशूलधर सेवहि सदा ॥ दुस-हरन प्रानन्द-भरन, तारन तरन चरन रसाल है। मुकुमाल गुनमनिमाल उन्नत भाल की जयमाल है ॥१॥ एन्द पत्ता जय त्रिशलानन्दन हरिकृतवन्दन जगदानन्दन चन्दवरं। भवतापनिकन्दन तनमनफन्दन रहित सपन्दन नयनधरं ॥२॥ बन्द प्रोटक जय केवलभानु फला सदनं, भवि कोक विकासन फजवनं। जगजीत महारिपु मोह हां, रजज्ञान दृगांवर चूर करं ॥१॥ गर्भादिक मंगल मण्डित हो, दुख दारिद को नित खडित हो। जगमाहि तुम्हीं सत पडित हो,तुमही भव भावविहंडित हो।२ हरिवश सरोजनको रवि हो, वलवन्तमहन्त तुम्ही कवि हो। लहि केवल धर्म प्रकाश कियो,अवली सोई मारग राजति यो।३ पुनि श्राप तने गुनमाहि सही, सुरमग्न रहे जितने सबही। तिनको वनिता गुन गावत हैं, लय माननि सो मन भावत हैं पुनि नाचत रङ्ग उमङ्ग भरी, तव भक्ति विर्ष पग एम घरी। भवन झननं झननं झननं, सुरलेत तहा तनन तननं ॥५॥
SR No.010298
Book TitleJain Stotra Puja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeer Pustak Bhandar Jaipur
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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