SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 190
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५० ) कृष्णा अगर घननार मिश्रित, लोग चन्द्र लेइये । ग्रहारिष्ट नाशक हेत भविजन, धूप जिनपद खेइये | रवि. धूप बादाम पिस्ता तेव श्रीफल, मोच नींबू तद फल चौबीस श्रीजितराज पूजत, मनोवांछित शुभ फलं । रवि फलं । जल गंध सुमन अखड तन्दुल, चरु सुदीप सुधूपक फल द्रव्य दूध दही सुमिश्रित, अर्ध देय अनूपकं । रवि । श्रयं जयमाला दोहा - श्री जिनवर पूजा किये, प्रहारिष्ट मिट जाय । सब मिल सेवे प्रभु पांय ॥ पद्धरि छन्द पंच ज्योतिषी देव जय जय जिन आदि महन्त देव, जय अजित जिनेश्वर करहिं तेव जय जय संभव भव भव निवार, जय जय अभिनंदन जगत तार जय मति २ दायक विशेष, जय पद्मप्रभ लख पदम लेष । जय जय सुपार्स हर कर्म फाल, जय जय चन्द्रप्रभ तुख निवास ।। जय पुष्पदन्त कर कर्म प्रन्त, जय शीतल लिन शीतल करत । जय श्रेय करत श्रेयांस देव, जय वासुपूज्य पूजत तुमेव ॥ जय विमल २ कर जगतजीव, जय२ प्रनन्तसुत प्रति सदीव । जय धर्म धुरन्धर धर्मनाथ, जय शांति जिनेश्वर मुक्ति साथ || जय कुन्थुनाथ शिव सुखनिधान, जय घर जु जिनेश्वर मुक्तिधान जय मल्लिनाथ पद पद्म भास, जय मुनिसुव्रत सुव्रत प्रकाश || जय जय नमिदेव दयाल संत, जय नेमनाथ तसु गुरण अनन्त । जय पारस प्रभु सङ्कट निवार, जय वर्द्धमान श्रानन्दकार ॥
SR No.010298
Book TitleJain Stotra Puja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeer Pustak Bhandar Jaipur
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy