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________________ ...................... ..७६ ___ समुच्चय पूजा। दोहा-प्रर्फ चन्द्र कुज सोम गुरु, शुक्र मनिश्चर राहु । केतु ग्रहारिष्ट नाशने, पी जिन पूज रचाह ।। ॐ ह्री मर्वयह परिष्ट निवारक नतुगिति जिन मार प्रयतर २ नंवोपट पाहानन । प्रम निष्ठ निष्ठ, ठ ठ स्थापनं । प्ररमम मषि हितो भय गव वगट मन्निधिकरणम् । पष्टया-नीतिका बन्द क्षीर सिंधु समान उज्ज्वल, नीर निमंल लीजिये। चौबीस श्रीजिनराज पागे, धार जय शुभ दीजिये ।। रवि सोम भूमज सौम्य गुरु कपि, शान नमो पूतफेतये । पूजिये चौदोस जिन, ग्रहारिष्ट नाशन हेतधे ।। ॐ ह्री नवंग्रहारिष्टनिधारा श्रीचतुविशतितीर्थकर-मिनेन्द्राय पचफल्याणक-प्राप्ताय जल निवंगागीति स्वाहा। श्रीखण्ड कुमकुम हिम सुमिश्रित, घिसों मनफर चावसौं । चौबीस घोजिनराज अघहर, चरण चरचो भावसौं ।रधि.चं. अक्षत अखण्दित सालि तन्दुल, पुञ्ज मुक्ताफलसमं । चौबीस श्रीजिनगज पूजत, नाश नवग्रह भ्रम रवि.म. कुन्द फमन गुलाब फेतकि, पानती जाही जुही। कामवाण विनाश कारण, पूजि जिनमाला गुही रवि.पुष्पं फेनी सुहारी पुवा पापर, लेड मोदक घेवर । शताछद प्रादिक विविध व्यंजन,क्षुधाहर पह सुखकरं रवि.निवे मरिणवीप जगमग जोत तमहर, प्रभु भागे लाइये । अज्ञान नाशक निज प्रकाशक, मोह तिमिर नसाइये ।रविवोपं
SR No.010298
Book TitleJain Stotra Puja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeer Pustak Bhandar Jaipur
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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