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________________ f भनभन हरवं शोभन गुन मद समर पर समान नवेश न मिटायनमेव भावन गुत किया । रमप्रभु हरनिये ।। तमन्नाशक व्यपरायणा हिमपर पोपन तर निक्षेप प्रामोदय मावि दुपारी ज्ञानी । तर नदिन सुग्भ विज्ञानी प फन का दोहन जनमो ग्रस्त मस्त मेकर प्रतिमोहनेर. फर्स मग ग्रादि मार भग मन प्रभाव उपाय कर में घाव व वनायकं वश्ये।। अक्षा । www 123 र भ्रमणा परम तो परतार श्री यमान जगपान । कल मन वन दिन विकम । गाऊँ तिन जयमाल ॥१॥ जयति भूमिमा पाया रोवान || पोमु विमान ठान ||१|| कृष्णपुर विदा नृपेशा मा जननी ॥ दिन नया युग विज्ञान | तम यश निवार भान ॥२॥ हिमपदिति दिनेश | ये हवन गनकगिरि-शिर सुरेश | योग गुगरान । मृग दिव्य भोग भुगते विशाम ॥ ३॥ा मारगरि प्रति म पनि शिविका विभित्र || घमि पुरन गिद्धन तीन नाय । पाये गम वर धर्मादाय ॥४॥
SR No.010298
Book TitleJain Stotra Puja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeer Pustak Bhandar Jaipur
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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