SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 182
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७२ ] जे नर बन्दत भाव घर, सिद्धक्षेत्र गिरनार । पुत्र पौत्र सम्पति लहे, पूरन पुण्य भण्डार ।। सम्वत् विक्रमराय प्रमान, वसु जुग निधि इक अक सु जान । पोप मास पख सोम बखान, पञ्चम तिथि रविवार सु जान ॥१५॥ रच्यो पाठ पूजन सुखदाय, पढत सुनत चित प्रति हुलसाय ।। यात्रा करत धन्य ते जीव, पावें फल ह शिवतिय पीव ।।१६।। इत्याशीर्वाद। पावापुर सिद्धक्षेत्र पूजा दोहा-जिहि पावापुर छिति प्रघाति, हत सन्मति जगदीश । भये सिद्ध शुभथानसो, जजों नाय निज शीश ।। ॐ ह्री श्रीमहावीरनिर्वाणभूमि पावापुरसिद्धक्षेत्र अत्र अवतर अवतर, सवौषट् । अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ ठ स्थापन । अत्र मम सन्निहितो भव भव वपट् सन्निधिकरण । अथ अष्टक ।। गीतिका छन्द ।। शुचि सलिल शोतो कलिल रीतो धमन चीतो ले जिसो । भर कनक झारी त्रिगद हारी द त्रिधारी जित तृषो ।। वर पद्मवन भर पसरवर वहिर पावा ग्राम ही। शिवधाम सन्मति स्वामि पायो जजो सो सुखदा मही ।। ॐ ह्री श्रीवीरनिर्वाणभूमि पावापुरक्षेत्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जल भव भ्रमत भ्रमत अशर्म तपकी तपन कर तपताइयो । तसु वलयकदन मलयचदन उदयसग घसिल्याइयो ।वर.चदन।। तदुल नवीने अखड लीने ले महीने ऊजरे । मणिकुन्दइदुतुषारद्युतिजित करण रकावीमे धरे ।वर.अक्षत।।
SR No.010298
Book TitleJain Stotra Puja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeer Pustak Bhandar Jaipur
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy