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________________ १६० ] केसर आदि कपूर सुगंध मिलाइये । पूजों शिखर सम्मेद सु मन वच काय ज । नरकादिक दुरव टरै अचल पद पाय जू ।। ॐ ह्री श्रीसम्मेद शिखर सिद्धक्षेत्रेभ्यो समारतापविनाशनाय चदन । धवल स उज्ज्वल तन्दुल खासे धोयके । हेम वरनके थार भरौं शुचि होयके ।।पूर्जी ।। ॐ ह्री श्रीसम्मेदशिखर सिद्धक्षेत्रेभ्यो अक्षयपद प्राप्ताय अक्षत ।। फूल सुगन्ध सुल्याय हरष सो प्रान चढायो। रोग शोक मिट जाय मदन सब दूर पलायो ।पूजी.। ॐ ह्री श्रीमम्मेदशिखर सिद्वक्षेत्रेभ्यो कामवाणविघ्वशनाय पुष्प । पदस के नैवेद्य कनक थारी भर ल्यायो। क्षुधा निवारण हेतु सु पूजौं मन हरषायो ।पूजौं। ॐ ह्री श्रीसम्मेदशिखर सिद्धक्षेत्रेभ्यो क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यम् । लेकर मरिणमय दीप सुज्योति उद्योत हो। पूजत होत स्वज्ञान मोह तम नाश हो ।पूजो०॥ ॐ ह्री श्रीमम्मेदगिलर सिद्धक्षेत्रेभ्यो मोहावकारविनाशनाय दीप । दश विधि धूप अनूप अग्नि मे खेवहू ।। अष्ट कर्म को नाश होत सुख लेवहूँ ।।पूजी०।। ॐ ह्री श्रीसम्मेदगिरवर मिक्षेत्रेभ्यो अष्टकर्म विध्वसनाय धूप० ॥ केला लोग सुपारी श्रीफल ल्याइये । __ फल चढाय मनवाछित फल सु पाइये ।।पूर्जी०।। ॐ ह्री श्रीसम्मेद शिखर मिद्वक्षेत्रेभ्यो मोक्षफनप्राप्नाय फन० ॥ जल गन्धाक्षत फूल मु नेवज लीजिये । दीप धूप फल लेकर अर्घ चढाइये ॥ पूजी० ।। ॐ ह्री श्रीमम्मेदशियर मिक्षेत्रेम्यो अनयंपदप्राप्तये अध्य॑म ।।
SR No.010298
Book TitleJain Stotra Puja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeer Pustak Bhandar Jaipur
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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